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________________ जीवाभिगमसूत्र गइयाँ देवा हिरण्णवास वासंति' अप्येकका देवा हिरण्यवर्ष वर्षन्ति, 'अप्पेगइया देवा मुंवणेवांसं वासंति-अप्येकका देवाः सुवर्णवर्षां वर्षन्ति, मुवर्णवां कुर्वन्ति इत्यर्थः "अप्पैगइया देवों एवं रयणवासं'-अप्येके देवा रत्नवर्प चर्पन्ति,-'वइरवास' बन. व वर्षन्ति, 'पुप्फवासं' पुष्पवर्ष वन्ति, 'मल्लवास'-माल्यवर्प वर्षन्ति, 'गंधवास गन्धानां वर्षां कुर्वन्ति, 'चुण्णवासं'-चूर्णानां वर्ष वर्ष न्ति, 'वत्थवासं' आहरणवास'वस्त्राभरणयोष वर्षन्तीति । 'अप्पेगइया देवा हिरण्णविहि भाईति'-अप्येकका देवाः शेषदेवेभ्यः हिरण्यविधि भाजयन्ति विश्राणयन्ति-ददन्तीतिभावः । एवं सुवण्णविधि भाजयन्ति ददतीत्यर्थः, 'रय गविधि वइरविधि'-रत्नविधि वज्रविधि भाजयन्ति ददति, 'पुष्फविधि मल्लविधि गंधविधि' पुप्पमाल्यगन्धानां विधिं भाजयन्ति, चूर्णविधिश्च, 'वत्थविधि आभरणविधि' वस्त्रामरणानां विधि भाजयन्ति । इति से इसे देखलेना चाहिये 'अप्पेगइया देवा सुवण्णवासं वासंति' कितनेक देवों ने उस समय सुवर्ण की बरपा की 'अप्पेगड्या देवा एक रयणावासं' कितनेक देवोंने उस समय रत्नों की वरपा की, वहरवास' चत्ररत्नों की वर्षा की 'पुप्फावासं' पुष्पों की वरषा की; 'मल्लवास मालाओं को वरषा की 'गंधवासं' गंध की वर्षा की 'चुण्णवासं' सुगंधित चूर्ण की वरषा की 'वत्थवासं' वेश-कीमती वस्त्रों की वरषा की 'आभरणवासं' आभरगों की वर्षा की 'अप्पेगइया देवा हिरण्णवीहिं भाइत्ति' कितनेक देवोंने सुवर्णका दान दिया 'रयणचीधि' रत्नों का दान दिया 'वहरवीधि' वरत्नों का दान दिया 'पुष्फविधि, भल्लविधि, गंधविधि' पुरुषों का दान दिया, मालाओंका दान दिया, सुगन्धित द्रव्यों का दान दिया 'चुण्यविधि, वत्थविधि, आभरणविधि' चूर्णका दानदिया, वस्त्रों का दान दिया, और आभ पसा ४२वाभा मापी गये छे. तेथी ते त्यांची सभ देवी. 'अप्पेगइया देवा सणवासं वासंति' 21 हेवाय ते १मते सोनाना परसाह परसाव्ये! "अप्पेगइया देवा एवं रयणवासं' डेटा हेवास से समये रत्नानी परसा १२सध्या. 'चइरवास, परत्नान१२सा५२साव्या. 'पुष्फावास' ध्यान। रसह परसाव्ये! 'मल्लवासं' भाणामाने१२सा १२साव्या. 'गंधवास' सुध द्रव्यन। १२सा परसाव्य.. 'चुण्णवास' सुधित यूएन। १२सार १२साव्यो. 'वत्थवास ीमती सोनी प२सा६ १२साव्या. 'आहरणवासं' माभूपानी परसाई परसाव्या. 'अप्पेगइया देवा हिरण्णवीहि भाइंति' ट४ हेवाय सोनाना हान धा. श्यणवीहि' टस हेवाये रत्नाना हान वया. 'वईरवीहि' ८९ हेवा पyरममा हानीया. 'पुफियीहिं, मल्लवीहिं, गंववीहिंसा हेवाये ध्याना हात वाया भाणायाना हान वया सुगचित न्याना हान in 'चुण्णशीहिं
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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