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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६६ विजयदेवाभिषेकवर्णनम् जित्तो-पलिप्ताम्, आसेचित-सम्मार्जितोपलिप्तां, जलसेचन-कचवरशोधनगोमयाद्युपलेपनैः कुर्वन्ति 'सित्तसुइ सम्मट्टरत्यंतरावणवीहियं करेंति'-सिक्तशुचि-सम्मृष्ट-रथ्यान्तराऽऽपणवीथिका कुर्वन्ति जलेन सिक्तानि-अतएव-शुचीनि पवित्राणि सम्मृष्टानि संमार्जितानि कचवराऽपनोद नेन रथ्यान्तराणि-आपणवीथयो हटमार्गों यस्यां सा तां तथा कुर्वन्ति, । 'अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि मंचातिमंचकलियं करेंति'-अपि नाम केचन देवा विजयां राजधानी मश्चातिमञ्च कैलितां कुर्वन्ति, 'अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि' अप्येककाः केचन देवा विजयां राजधानीम्-‘णाणाविहरागरंजिय ऊसियजय विजयवेजयंती पडागर्मडियं करेंति-नानाविधरागरञ्जितोच्छ्रितविजयवैजयन्तीपताकातिपऽताका मण्डिता कुर्वन्ति तत्र-नानाविधैः अनेकविशिष्टभेदवद्भिः रागैः रञ्जिता उच्छ्रिताः फर्व स्थापिताश्च याः जयविजयद्योतिकाः वैजयन्तीपताकातिपताकास्ताभिर्मण्डितां भीतर एवं बाहर से-सब तरफ से 'आसित्तसम्मजित्तोवलितं' जलका छिडकाव देकर और पोछ पोछकर तथा उसे लीप पोतकर उसकी 'सितसुइसम्मट्टरत्यंतरावणवीहियं करेंति' गलियों को उसके बाजार के रास्तों को बिलकुल साफ सुतराकरने में लगे हुए थे 'अप्पे गइया देवा विजय रायहाणि मंचातिमंचकलितं करेंति' कितनेक देव इस समय विजयाराजधानी को मंचों के ऊपर मंचे जिसमें विछाई जा रही हैं। इस प्रकार की करने में लगे हुए थे 'अप्पेगइया देवा विजयं रायहा]ि शाणाविहरायरंजिय सिय जयविजयवेजयन्ती पडागातिपडागमंडियं करेंति' कितनेक देव विजयाराजधानी को अनेक प्रकार के रंगों से रंगी हुई एवं जय सूचक विजय वैजयन्ती नामकी पताकाओं पर पताकाओं से मंडित करने में लगे हुए थे 'अप्पेगइया देवा विजय विन्या पानान 'अभितर बाहिरिय' म ४२ अने. पारथी मधी माती 'आसित्तसम्मज्जितोवलित' पाशीना छ४१ ४रीन तथा दुधी पूछीन तथा तेन सीपी पोतीन तेनी 'सित्तसुइ सम्मट्टरत्यंतरावणवीहियं करेंति' तेनी लियोन तेना मरना २स्तासाने मे४४म सा सु ४२वामा खासा उता. 'अप्पेगइया देवा विजय रायहाणिं मंचातिमंचकलितं करेंति' को मते टा हे पिया રાજધાનીને મંચની ઉપર મંચે જેમાં પાથરવામાં આવે તેવા પ્રકારથી શણ गरपामा लागेका हुता. 'अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं णाणाविह रायरंजिय ऊसिय जयविजयवेजवन्ती पडागातिपडागमंडियं करेंति' डेटा है। વિજય રાજધાનીને અનેક પ્રકારના રંગથી રંગવામાં તેમજ જય સૂચક વિજય વૈજયન્તી નામની ધજાઓની ઉપર ધજાઓથી શણગારવામાં લાગ્યા હતા.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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