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________________ '२८८ जीवाभिगमसूत्रे चेव' यानि तत्रोत्पलादीनि चतपत्र हान्दारितानि कृणन्ति गृहीत्वा च'जेणेव पुण्यवि देहावरदि देहवासा जेणेव सीयाजी ओयाओ नहाओ जहा गईओ' यत्रैव पूर्वविदेहाऽपरविदेवर्पाणि यद सीखोदकामधन्धो यथानद्यः 'जेणेव सन्धचक्कवडि विजया' - यचैव सर्वचक्रवत्ति विजयाः 'जेणेव सव्वसागहवरदामभासाड़ तित्थाई तहेव जहेब' - मैच सर्वभाग वरदाम प्रभासाव्यतीर्थानि तत्रोपा गच्छन्ति तत्रैवोपागत्य तीर्थोदकं तटवर्त्तिवृतिकांथ गृहीत्वा, 'जेणेव सव्ववक्खारपच्त्रया सव्वतूवरेय' तत्रैव सर्ववसरकार पर्वतास्तत्रैवो पागच्छन्ति तत्रैवोपागत्य सर्वसर्वपुष्पाणि सर्वमायानि सर्वोपत्री सिद्धार्थकांच] गृहन्ति, गृहीत्वा 'जेणेव सव्वंतरणईओ सरितोदमं गेण्डंति' तं चैव यत्रैव सर्वान्तर नद्यस्तत्रैवो च्छित्ता जाई तत्थ उप्पलाई तं चेन' वहां आकरके उन्होंने वहां से जिनने उत्पल जादि थे उन सब को लिया फिर 'जेणेव पुत्र्वविदेहावरविदेह वासाई जेणेव सीग्रासीओपाओ माणईओ जहा गईओ' वे जहां पर पूर्ववदेह और अपरविदेह थे और जहां सीता और शीतोदका नदियां थी तथा 'जेणेव सव्वचनवहि विजया' जहां पर सर्व चक्रव तियों के विजेतव्य विजय थे एवं 'जेणेव सव्वमा गहवरदामपभासाई तित्थाई तहेब जहेब' जहां पर सर्व मागघ, वरदाम और प्रभास नामके तीर्थ थे 'जेणेव सव्ववक्सार फव्या' एवं जहां पर सर्वचक्षस्कार पर्वत थे वहां पर आये वहां जाकरके उन्होंने वहां से 'सव्वतृवरेय' तीर्थोदक आदिको एवं समस्त ऋतुओं के पुष्पादिकों को ग्रहण किया सबको यथा स्थान से लेकर फिर वहां से वे 'जेणेव सव्वं तरणदीओ सलिलोदगं गेण्हति' जहां सर्वान्तर नदियां थी वहां पर आये वहां तेथेो न्याव्या. 'तेणेव उनागच्छित्ता जाई तत्थ उपलाई तं चैव' त्यां भावीने तेमागे ते हहोभा भेटला उत्यक्ष विगेरे हुता मे मधाने सीधा ते पछी 'जेणेव पुव्व विदेहावर विदेहवासाई जेणेव सीया सीओयाओ महाणईओ' तेयो ल्यां આગળ પૂ'વિદેહ અને અપર વિદેહ હતા અને જ્યાં સીતા અને શીતોદા नहीयो हुती तथा 'जेणेव सञ्च चकाट्टि विजया' ल्यां भागण सर्व श्रवर्तिना विकतव्य विन्न्यो हुता भने 'जेणेव सव्च मागहवरदाम पभासाईं तित्थाई तहेव जहेव' यां भागण सर्व भागध वरहाम भने प्रलास नाभना तीर्थो हता 'जेणेव सव्व वक्खारपव्यया' भने ल्यां भागण सर्ववक्षार पर्वतेो हतो तेथेो याव्या त्यां भावीने तेथेोगे त्यांथी 'सातूवरेय' तीर्थो विगेरे तथा સમસ્ત ઋતુઓના પુષ્પાદિકાને ગ્રહણ કર્યો તે બધી વસ્તુએ ચેાગ્ય સ્થાન परथी बने ते पछी त्याथी नीडणीने तेथे 'जेणेव सव्वंतरणदीओ सलीलो
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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