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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ ३ सू.६३ ईशानकोणे सिद्धायतनवर्णनम् २४१ चन्द्रप्रभ वज्रवैडूर्याणि नानामणिकनकरत्नानि विमलमहाधतपनीयानि चैभिरुज्ज्वला विचित्रा दण्डा येषां तानि, 'चिल्लियाओ' चित्राण्याश्चर्याणि 'संखककुददगरय अमयमहियफेणपुंजसण्णिकासाओ' शङ्खाऽङ्ककुन्दोदकरजोऽमृतमथितफेनपुञ्जसन्निकाशानि, 'सुहुमरयतदीहवालाओ'- सूक्ष्मरजतदीर्घवालानि, 'चामराओ'चामराणि; 'सलीलं'-खेदरहितं यथा तथा, 'ओहारेमाणीओ' अवधारयन्त्यः 'चिट्ठति-आसते ॥ 'तासिणं जिणपडिमाणं पुरओ दो दो नागपडिमाओ'तासां खलु जिनप्रतिमानां पुरतो द्वे-ढे नागप्रतिमे, सनिक्षिप्ते तिष्ठतः इत्यग्रिमेण सहान्वयः, तथा-'दो दो जक्लपडिमाओ'-द्वे द्वे यक्ष प्रतिगे, दो दो वैडूर्य आदि अनेक प्रकार के मणियों के एवं कनक रत्न के तथा विमल वेश की बनी तपनीय स्वर्ण के बने हुए हैं, अतः ये बडे ही विचित्र और उज्वल देखने में लगते हैं। 'चिल्लियाओ' ये चाभर अनेक प्रकार के हैं अथवा इनके दण्ड अनेक प्रकार के हैं। 'संखककुंदगरय अमयमहियफेण पुंज संनिकासाओं तथा शंख अंक कुन्द, उदक, रज, और मथित अमृत के फेन पुंज के जैसे ये चामर प्रतीत होते हैं। सूक्ष्मरजतदीर्घवाला' इन चामरों के बाल विल्कुल सूक्ष्म चांदी के तारों के जैसे दीर्घ है, ये चामर 'धवलाओ' धवल है ऐसे इन चामरों को ये चामर धारिणी प्रतिमाएं बडे ही नखरों के साथ ढोरती हुई खडी है। 'तासिणं जिणपडिमाणं' इन जिन प्रतिमाओं-कामदेव की प्रतिमाओं के सामने 'दो दो नागपडिमाओ पंजलिउडाओ संणिक्खित्ताओ चिट्ठत्ति' दो दो नागप्रतिमाएं हाथ जोडे हुए खडी हुई है तथा 'दो दो जक्खपडिमाओ दो दो भूतपडिमाओ दो दो कुंडाधारपडिमाओ મણિથી તથા કનક રત્નોથી તથા વિમલ વેશથી બનેલ તપનીય સેનાથી मनेर छ. तेथी ते हेमवामi Aur विचित्र मने Serqe सागे छ. 'चिल्लियाआ' श्य याम। मने प्रश्न छ. मथ तन 31 मने प्रारना छे. 'संखंककुंददगरय अमयमहियफेनपुंजस निकासाओ तथा शम. २४ ६४ २०१ मने મંથન કરવામાં આવેલ અમૃતના ફીણના ઢગલા જેવા એ ચારે જણાય છે. सूक्ष्मरजतदीर्घवाला' से याभरीना पाया मेम सूक्ष्म यांहीना तापा ein छ. ये याभ। 'धवलाओ धोणीय छे. मेवी से याभरीने ते याभर ધરવાવાળી પ્રતિમાઓ ઘણાજ નખરાઓ પૂર્વક ઢળતી હોય તેમ ઉભેલ છે. 'तासिणं जिणपडिमाणं' से न प्रतिमामानी सामे 'दो नो नागपडिमाओ पंजलिउडाओ चिति' म न प्रतिमा थि डीन. मे छ. तथा जी० ३१
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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