SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ. सु ६३ ईशानकोणे सिद्धायतनवर्णनम् २३९ 'पुलगमईओ दिट्ठीओ' पुलकमथ्यो दृष्टयः 'रिहामईओ तारगाओ' रिष्टमय्योsसिमध्यगतास्तारिकाः कनीनिकाः 'रिटामयाइ अच्छिपत्ताई' रिष्टरत्नमयान्यक्षि पत्राणि, 'रिट्ठामईओ भमुहाभो' रिष्टरत्नमय्यो भ्रवः, 'कणगामया कवोला'कनकमयाः कपोलाः 'कणगामया सवणा'-कनकमयानि श्रवणानि-कर्णाः, 'कणगामया णिडाला'-कनकमया ललाटाः कपोलेत्यर्थः 'वट्टा' वृत्ताः, 'वइरामईओ सीसघडीओ'-वघ्नमय्यः शीर्षघटिकाः 'तवणिज्जमईओ केसंत केसभूमिओ' तपनीयमय्यः केशान्टकेशभूमयः 'रिहमया उवरि मुद्धजा'-रिष्टरत्नमया उपरि भागे मूर्धजाः केशाः, ॥ 'तासिणं जिणपडिमाणं'-तासां खलु जिनप्रतिमानाम्, 'पिट्ठतो पत्त्यं पत्तेय'-पृष्ठतः परभागे प्रत्येकं प्रत्येकमेकैकमित्यर्थः 'छत्तधार पडिबनी हुई है 'अन्तर्लोहिताक्ष प्रतिषेकाणि' आंखों के भीरत की रेखाएं लोहिताक्षरत्न की बनी हुई है। रिष्टमय्यस्तारिका:' आंखें की तारिकाएं-कनीनिकाएं रिष्ट रत्नकी बनी हुई हैं । 'रिष्टमयानि अक्षिपत्राणि' आखों की बरोनियां रिष्टरत्नों की बनी हुई है । 'रिष्टमय्योभ्रवः' इनकी दोनों भौएं रिष्ट रत्नों की बनीहुई हैं 'कनकमया कपोला:' इनके दोनों गाल सुवर्ण के बने हुए है । कनकमयाः श्रवणाः' इनके दोनों कान सुवर्ण के बने हुए हैं। 'कणगामयानिडाला' सुवर्ण के इनके भाल हैं। 'वरामईओ सीसघडिओ वज्र के इनके मस्तक हैं। 'तवणिज्जमइओ केसंतकेसभूमिओ' तपनीयसुवर्ण की इनकी केशभूमि है। 'रिष्टमया उपरिमूर्धजा' रिष्ठ रत्नके इनके मस्तकके बाल हैं। 'तासिणं जिणपडिमाणं पिता पत्तेयं २ छत्तघारपडिमाओ' इन जिन प्रतिमाओं -कामदेव की प्रतिमाओं पैकी प्रत्येकजिन प्रतिमा-कामदेव की प्रतिमाके छ. 'रिष्टमय्यस्तारिकाः' मामान ताराम (२ण्ट २नना मने छ. रिष्टमयानि आक्षपत्राणि' मामानी पाप विष्ट रत्नानी मने छ. 'रिष्टमय्यो भ्रवः' तना मन्ने सभ। रिट रत्नना मन छ. 'कनकमया कपोलाः' तेना भन्न सा सुपना भने छ. 'कनकमयाः श्रवणाः तेना मन्नानी सुवर्ण निमित छ. 'कणगामया निडाला' तेन मा प्रदेश सुवना छे. 'वइरामईओ सीसघडीओ' तेना भरती १०१२नना मनेर छे. 'तवणिज्जमइओ केसंत केसभूमिओं तपनीय सुवर्णनी तनीश भूमिया छ. 'रिष्टमया उवरिमुद्धजा तना माथानापामा रिट रत्नना मनसा छ. 'तासिणं जिणपडिमाण पिद्धतो पत्तेयं पत्तेयं छत्तधार पडिमाओ पण्णत्ताओ' मा लन प्रतिमामा-महेवनी प्रतिभामा ४ी ४२४ - प्रतिमानी પાછળ તેના પર છત્ર ધરી રાખનારી પ્રતિમાઓ છે. તે બધી વ્યંતર જાતના देवानी छे, 'ताओ णं छत्तधारपडिमाओ हिमरजकुंदेन्दुप्पभासाई कोरिंमल्लदामाई
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy