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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ.३ सू.६२ तत्रस्थितमणिपीठिकायाः वर्णनम् २२५ ठिकोपरि प्रज्ञप्तम् 'तस्स णं देवसयणिज्जस्स'-तस्य देवशयनीयस्य खलु, अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते'-अयमेतद्रूपो वक्ष्यमाणाऽऽकारवान् वर्णावासः प्रज्ञप्तः "तं जहा - तद्यथा-'गाणामणिमया पडिपाया-'नानामणिमयाः प्रतिपादाः मूल पादानां प्रतिविशिष्टोपष्टम्भ करणाय पादाः इति प्रतिपादाः 'सोवण्णिया पाया' सौवर्णिकाः पादाः मूलपादाः इत्यर्थः । 'णाणामणिमया पायसीसा-नानामणिमया पादशीर्षकाः, 'जबूणयमयाइं गत्ताई'-जाम्बूनदमयानि गात्राणि शरीराणीत्यर्थः 'वइरामया संधी'-वज्रमया:-वनाख्यरत्नसंघटिताः सन्धयः, 'णाणामणिमएचिच्चे' नानामणिमयं च्युतम् 'रययामया तूली' तूली-तूलिका रजतमयी, 'लोहियक्खमया विव्वोयणा'-लोहितरत्नमयानि विब्बोयणाः उपवानकानि। 'तवणिज्जमई गंडोवहाणिया-तपनीयमया गण्डोपधानिकाः (कपोलस्थल स्थापनीयानि) 'से णं देवसयणिज्जे-तत्खलु देवशयनीयम्, 'उभओ विव्वोयणे-'उभयतो विव्वोयणम्-उभयतः, उभौ शिरोन्तपादान्तौ-आश्रित्य विव्वोयणे-उपधाने देवशयनीय शय्या है 'तस्स देवसयणिजस्स अयमेयारवे वण्णावासे पन्नत्ते' उस देवशयनीय का वर्णन इस प्रकार का है-'णाणामणिमया पडिपाया' अनेक मणियों के तो इसके प्रतिपाद है । मूलपायों के नीचे रखे गये पाये हैं 'सोवणिया पाया' मूलपाद सुवर्ण के बने हुए है । 'णाणा मणिमया पायसीसा' इसके पाद के ऊपर के भाग अनेकमणियों के बने हुए हैं। 'जंबूणयाइं गत्ताई' इसका सारा शरीर सुवर्णका बना हुआ है 'वइरामया संधी' इसकी संधी वज्ररत्नकी बनी हुई हैं। 'रययामया तूली' रत्नों की बनी हुई इसकी निवार है 'लोहियक्खमया बिम्बोयणा' लोहिताक्षमणि के बने हुए तकिये हैं। 'तवणिजमई गंडोवहाणिया तपे हुए सुवर्ण के गंडोपधान हैं-गालों के नीचे शयनीय-शच्या छ. 'तस्स देवसयणिज्जस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्त' हेवशयनीय वन मा प्रमाणे छ ‘णाणामणिमया पडिपाया' भने भणियोना तो तेना प्रतिपाई छ. २मर्थात् भूल पायागानी नीय रामेस पाया छ. 'सोवणिया पाया' तेना भूण पाह सोनाना मनेा छ. 'णाणामणिमया पायसीसा' तेना पानी परन मा भने भणियोनो मनेर छे. 'जंवूणयाई गत्ताई' तेनु संपूर्ण शरीर सोनानु भने छ. 'वइरामया संधी' तेनी संधी पत्ननी अनेस छ. 'रययामया तूली' तेनी निवार रत्नानी गनेस छे. 'लोहियक्खमया विव्बोयणा' तेना तslil सोडिताक्षमायाना मनेसा छे. 'तवणिजमई गंधोवદુનિયા તપેલા સોનાના બનેલ ગાલે ધાન-ગાલેની નીચે રાખવામાં આવનારા जी०२९
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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