SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ ७.३ सू. ६२ तत्रस्थितमणिपीठिकायाः वर्णनम् २२३ मंगलगा' ऊर्ध्वभागेऽष्टावष्टौ मङ्गलकानि स्वस्तिक - श्रीवत्स वर्द्धमानक-नन्दिकावर्त्त-भद्रासनकलश-मत्स्य-दर्पणाख्यानि सन्ति । तथा - 'झया' ध्वजाः कृष्णनीललोहितहारिद्रशुक्ल चामरध्वजाः भवन्ति, तथा - 'छत्ताइछत्ता' - छत्रातिछेत्राणि इति । 'तरसणं माणवयस्स चेइयखंभस्स' - तस्य खलु माणवकनाम्नचैत्यस्तम्भस्य, 'पुरच्छिमेणं' - पूर्वस्याम्, 'एगा महा मणिपेढिया पन्नत्ता' एका महती मणिपीठिका प्रज्ञप्ता । 'सा णं महामणिपेढिया ' - सा खलु महामणिपीठिका, दो जोयणाई आयाम विक्खभेणं' - योजनद्वयप्रमाणा भवत्यायामविष्कम्भाभ्याम् 'जोयण बाहरलेणं' - पृथुत्वेन योजनमेकम्, 'सव्यमणिमई जाव पडिख्वा' - सर्वात्मना मणिमयी अच्छा - श्लक्ष्णा-घृष्टा मृष्टा निर्मला नीरजस्का निष्पङ्का निष्कण्टकच्छाया सप्रभा सोद्योता समरीचिका प्रासादीया दर्शनीयाऽभिरूपा प्रतिरूपेति । 'ती से णं मणिपेढियाए उपि' - उपरि मणिपीठिकायास्तस्याः, 'एत्थ णं चैत्यस्तम्भ के उपर अट्टमंगलया' आठ आठ मंगल द्रव्य है तथा 'झया' कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र, और शुक्लवर्ण की ध्वजाएं है और छत्रातिछत्र है । 'तस्स णं माणवयस्स चेहयखंभस्स' उस माणवक चैत्यस्तम्भ की ' पुरच्छिमेणं' पूर्वदिशा में 'एगा महा मणिपेढिया पण्णत्ता' एक विशालमणिपीठिका है 'सा णं मणिपेढिया दो जोयणाइ आयामविवखंभेणं' वह मणिपीठिका २ योजन की लम्बी चौडी है । 'जोयणं वा हल्लेणं' तथा एक योजन की मोटी है 'सव्वमणिमई जाव पडिख्वा' यह मणिपीठिका सर्वात्मना मणिमयी है और यावत् प्रतिरूप है । यहां यावत् शब्द से अच्छा श्लक्ष्णा धृष्टा मृष्टा निर्मला, नीरजस्का निष्पङ्का निष्कण्टकच्छया सप्रभा सोधोता, समरीचिका प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा, इन पदों का संग्रह हुआ है । 'तीसेणं स्त ंभनी ७५२ 'अट्ठट्ठमंगलया' आठ माह मंगलद्रव्य छे. तथा 'ज्झया' धृष्णु, नीस, सोडित, (सास) हरिद्र, (पीजे) भने सह वर्षानी धलयो छे भने छत्रातिछत्र छे. 'तस्स णं माणवयस्स चेइयखंभस्स' मे भाव येत्यस्त' भनी 'पुरत्थिमेणं' पूर्वद्विशाभां ‘एगा महा मणिपेढिया पण्णत्ता' मे विशाण भणिपीठि छे, 'सा णं मणिपेढया दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' ये भशिपीडा मे योजननी सांगी थडोजी छे. 'जोयणं बाहल्लेणं' तथा मे योगनना विस्तारवाजी छे. 'सव्वमणिमई जाव पडिवा' या मणिपीडिया सर्वात्मना भीभयी छे. मने यावत् प्रतिइय छे. मडीयां यावत्शण्डथी 'अच्छा, श्लक्ष्णा, घृष्टा मृष्टा, निर्मला, नीरजear faoist निष्कंटकच्छाया सप्रभा सोद्योता समरीचिका प्रासादीया दर्शनीया, अभिरूपा' आयोनो संग्रह थयेल छे, 'तीसे णं मणिपेढियाए उपिं मे भषि
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy