SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०९ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ०३ सू. ६१ सुधर्मासभायाः वर्णनम् 'छत्ताइछत्तकलिया'-छत्रातिच्छत्रकलिताः छत्रातिच्छत्राणि उपर्युपरिस्थितानि - आतपत्राणि तैः कलितः, 'तुंगा' - तुङ्गा उच्चाः, उच्चैस्त्वेन चतुर्योजन प्रमाणत्वात् । 'अतएव - 'गगणतलमभिलंघमाणसिहरा' गगनतलमभिलंघ्यमानशिखराः गगनतलमाकांश प्रदेशोऽभिलंघ्यमानं शिखरं येषां ते तथा 'पासाईया जाव पडिरुवा' - प्रासादीयाः दर्शनीया अभिरूपाः, 'तेसिणं माहिंदज्झायाणं उपि' - तेषां खलु माहेन्द्रध्वजानामुपरि, 'अट्टमंगलगा झया छत्ताइछत्ता' - अष्टावष्टौ मंगलकानि स्वस्तिकादीनि कृष्णनीलादिध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि । 'तेसिणं महिंदज्झयाणं पुरओ' - तेषां खलु माहेन्द्रध्वजानां पुरस्तात्, 'तिदिसिं तओ नंदाओ पुक्खरिणीओ पन्नत्ता' - त्रिदिशि पूर्वदक्षिणोत्तरासु तिस्रो नन्दा नन्दाभिधानाः कहा गया है । अथवा वैजयन्ती पताकाओं के पास की जो कर्णिकाएं है । उनका नाम विजय है इस विजय प्रधानतावाली जो पताकाएं है वे विजय वैजयन्ती है । ये विजय वैजयन्ती पताकाएं 'छत्ताइछत्तकलिया' अपने ऊपर ऊपर स्थित छत्रों से- आतपत्रों से- युक्त हैं । ये सब विजय वैजयन्ती पताकाएं 'तुङ्गा' बहुत ऊंची है । क्योंकि इनकी ऊंचाई का प्रमाण चार योजन का हैं अतएव ये ऐसी प्रतीत होती है कि 'गगणतलममिलंघमाणसिहरा' मानों इनके शिखर - अग्रभागआकाशतलको ही उल्लंघन करने के लिये कटिबद्ध हो रहे हैं । 'पासाइया जाव पडिरूवा' ये प्रासादीय है - चित्त में प्रसन्नता भर देती है और यावत् प्रतिरूप है । 'तेसिणं माहिंदझयाणं उपि' इन पूर्वोक्तमाहेन्द्रध्वजाओं के ऊपर 'अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता' आठ आठ स्वस्तिकादि मंगल द्रव्य है ध्वजाएं हैं और छत्र के ऊपर छत्र भी है । વિજયને અર્થાત્ અભ્યુદયને સૂચવનારી છે. તેથી તેને વિજય વૈજયન્તી કહે છે. અથવા વૈજયન્તી પતાકાઓની પાંસેની જે કણિકાઓ છે. તેનુ નામ વિજય छे, मे विन्न्य अधानवाजी ने बताया छे. ते विनय वैभ्यति छे. 'छत्ताइ छत्तकलिया' पोतानी उपर उपर रहेला छत्रोथी युक्त छे से जधी विन्न्य વૈજયન્તી પતાકાઓ ‘તુળ' ઘણીજ ઉચી છે કેમકે–તેની ઉંચાઇનુ પ્રમાણુ ચાર योभननु छे. तेथी मे भेवी भगाय छे ! - ' गगणतलमभिलंघमाणसिहरा' लागे भेना शिमरो भाडाशतसनेन भोजंगवा भांटे तैयार था रहेस छे. 'पासाइया जाव पडिवा' ये प्रसाहीय छे, वित्तमां प्रसन्नता लरीहे छे. अने यावत्प्रतिश्य छे. 'तेसि णं माहिंदज्झयाणं उप्पिं' मा पूर्वोस्त माहेन्द्र धन्न योनी ५२ अठ्ठठ्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता' मा आठ स्वति विगेरे मंगल द्रव्यो छे. धन्नमेो छे, भने छत्रनी उपर छत्र छे. 'तेसिणं महिंदज्झायाणं पुरओ तिदिसि तओ जी० २७
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy