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________________ २०० जीवामिगमसूत्र थाओ पन्नत्ताओ' मणिपीठिका आसनविशेषाः प्रज्ञप्ताः । 'ताओ णं मणिपेदि. माओ' ताश्च खलु मणिपीठिकाः 'दो दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं-टे द्वे ..योजने दैर्घ्य विस्ताराभ्याम् । 'जोयणं वाहल्लेणं' पृथुत्वेन योजनमेकं भवन्ति, 'सव्व मणिमइओ' सर्वमणिमय्यस्ता भवन्ति मणिपीठिकाः, 'अच्छाओ' अच्छा। । स्वच्छाः आकाशवत् 'लण्हाओ' लण्हाः, 'सण्हाओ' श्लक्ष्णाः, 'घट्टाओ' घृष्टाः पर्शिताः, 'मटाओ' 'मृष्टाः मर्दिताः, 'णिप्पंकाओ' निष्पक्काः स्वभावतः स्वतोमलरहिताः, 'णीरयाओ' 'नीरजस्काः 'णिम्मला' निर्मलाः आगन्तुकमलरहिताः सप्रभाः सोयोताःप्रासादीयाः दर्शनीया अभिरूपाःप्रतिरूपाः एतदेव दर्शयति'जाव पडिरूवा' यावत्प्रतिरूपा भवन्ति तास्तामणिपीठिकाः'तासिणं मणिपेढ़ियाणं दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में 'मणिपेढियाओ पन्नत्ताओ' मणिपीठिकाएं आसनविशेष है। 'ताओणं मणिपेढियाओ' वे मणिपीठिकाएं 'दो दो जोयणाई आयामविखंभेणं' लम्बाई-चौडाई में दो दो योजन की है । 'जोयणं बाहल्लेणं' तथा मोटाइ में एक योजन की है। 'सव्वमणिमइओ' ये सब मणिपीठिकाएं सर्वात्मना मणिमय है 'अच्छाओ जाव पडिरूवाओ' एवं ये सब मणिपीठिकाएं आकाश एवं स्फटिकमणि के समान नीर्मल यावत् प्रतिरूप है। यहां यावत्पद से 'लोहाओ सण्हाओ घटाओ महाओ णिप्पंकाओ' णीरयाओ, णिम्मलाओ' इत्यादि अभिरूप तक के पदों का ग्रहण हुआ है इससे यह बतलायागया है कि ये सब मणिपीठिकाएं चिकनी है २ घिसी हुई है पृष्ट है स्वभावतः मलरहित हैं नीरजस्क है-आगन्तुक मेल से रहित है । अत एव निर्मल-बिलकुल साफ सुथरी हैं। प्रभा सहित हैं। उद्योत 'मणिपेढियाओ पन्नत्ताओ' भरि पीसी अर्थात् मासन विशेष छ. 'ताओ णं मणिपेढियाओं को भाषामा 'दो दो जोयणाई आयामविक्ख भेणं' 5 पाहामा मये योनी छे. 'जोयणं बाहल्लेणं' तथा विस्तारमा मेर योनी छे. 'सव्यमणिमईओ' के तमाम मणिपीय सर्वात्मना भरिभय छे. 'अच्छाओ जाव पडिरूवाओं से तमाम मणि पी017 201A અને સ્ફટિક મણિ સરખી નિર્મળ ચાવત્ પ્રતિરૂપ છે. અહિંયા યાવત્પદથી. 'लण्हाओ सण्हाओ घट्टाओ मट्ठाओ णिप्पंकाओ णीरयाओ णिम्मलाओ' त्या અભિરૂ૫ સુધીના પદને સંગ્રહ થયેલ છે. એનાથી એ બતાવવામાં આવેલ છે કે આ બધીજ મણિપીઠિકાઓ ચીકણી છે. ઘસેલી છે. મૃષ્ટ છે. સ્વભાવથીજ મલ વિનાની છે. અને રજ વિનાની છે. અર્થાત આગંતુક મેલ વિનાની છે. તેથી જ તે ઘણીજ નિર્મલ એકદમ સાફ સુફ છે. પ્રભાયુતક છે. ઉદ્યોત
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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