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________________ १७६ जीवाभिगमसूत्रे कृष्ण नीलादिध्वजाश्छत्राऽतिच्छत्राणि [एतत्सर्व यथावद्वर्णनीयमत्र] 'ते णं पासावर्डिसगा' ते खलु प्रासादावतंसकाः, 'अण्णेहिं चउहिं तदधुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहि पासायव.सएहि' अन्यैश्चतुर्भिः प्रासादावतंसकैस्तदर्बोच्च प्रमाणमात्रैः, 'सब्बतो समंता संपरिक्खित्ता' सर्वतो दिक्षु समन्ततः सामस्त्येन संपरिक्षिप्ताः । तदर्बोच्चल प्रमाणमेव दर्शयति ते णं' इत्यादि, 'तेणं पासायवडिंसगा' ते खलु प्रासादावतसकाः, 'देसूणाई चत्तारि जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं' देशोनानि चखारि योजनानि ऊर्ध्व मुच्चत्वेन, 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' द्वे. योजने आयामविस्ताराभ्याम्, 'अब्भुग्गयमुसिय' भूमिभागा उल्लोया' अभ्युद्गतोत्सृतेत्यादि भूमिभागा इन सब प्रासादावतंसकों के आगे आठ आठ मंगल द्रव्य तथा काली नीली ध्वजाएं एवं छत्रातिछत्र हैं ऐसा भी वर्णन करलेना चाहिये ते णं पासायडिंसगा अण्णेहिं तदधुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायडिंसएहिं सचओ समंता संपरिक्खित्ता' ये प्रासादावतंसक भी उन चार प्रासादावतंसकों से आधी ऊंचाइवाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से चारों ओर से घिरे हुए है। 'ते णं पासायडिंसगा देसूणाई चत्तारि जोयणाई उडू उच्चतेणं ये प्रासादावतंसक कुछ कम चार योजन की ऊंचाइ वाले हैं 'दो जोयणाई आयामविकावंभेणं' और लम्बाई चौडाई इनकी दो योजन की है। अभुग्गय भूसिय भूमिभागा उल्लोया' इस कथन के अनुसार यहां पर भी ऐसा कहना चाहिये कि ये चार प्रासादावतंसक अपनी ऊंचाई से ऐसे ज्ञात होते हैं कि मानो ये आकाश को ही छू रहे है इनका भूमिभाग समहोने से वहुत ही रमणीय है उल्लोक भी यहां पर है। इनका वर्णन पहिले ही 'उवरिं मंगलगाभूया छत्ताइ छत्ता' मा मधारी प्रासाहात सोनी मा मा8 આઠ મંગલ દ્રવ્ય તથા કાળી નીલી વિગેરે ધજાઓ અને છત્રાતિ છત્ર છે. એ प्रभारीनु पशु वर्णन ४ : 'ते णं पासायवडिं सगा अण्णेहि त च्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडिसएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' से प्रासादापत सी પણ એ ચાર પ્રાસાદાવતંસકેથી અધેિ ઉંચાઈવાળા બીજા ચાર પ્રકાદાવતં કેथी यारे माणुस ३२राया छे. 'ते णं पासायवडिं सगा देसूणाई चत्तारि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं' से प्रासाही पत माछा यार योगननी यावा छ. 'दो जोयणाई आयामविक्खभेण मन तनी A5 पडणारे योगाननी छे. 'अमुग्गयमूसिय भूमि भागा उल्लोया' २॥ ४थन प्रभारी मही या . मे કહેવું જોઈએ કે એ ચાર પ્રાસાદાવતં કે પોતાની ઉંચાઈથી એવા જણાય છે જાણે તેઓ આકાશનેજ સ્પર્શ કરી રહ્યા છે. તેને ભૂમિભાગ સમોવાથી
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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