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________________ जीवाभिगमसूत्र सिए' नो संयत- नो असंयत नो संयतासंयतः सादिकोऽपर्यवसित एव त्रितय प्रतिषेधवर्ती सिद्धः। 'संजयस्स-संजयासंजयस्स दोहवि अंतरं जहन्नेणं 'अंतोमुहुत्तं' द्वयोरपि संयतस्य संयताऽसंयतस्य चान्तर्मुहर्तमन्तरं जघन्येन 'उवकोसेणं अवडू पोग्गलपरिय देसूर्ण' उत्कर्पण अनन्तं कालं अनन्ता उत्सपिण्यवसर्पिण्यः कालतः, क्षेत्रतश्च अपार्द्धपुद्गलपरावर्त देशोनम्, 'असंजयस्स आदि दुवे णत्थि अंतरं' असंयतस्य आद्य द्वयोर्नास्त्यन्तरम् अनाधपर्यवसितस्याऽनादि सपर्यवसितस्य च तयो यथाक्रमं पर्यवसितत्वं प्रतिपाताऽभावात् । संजयए सादीए अपज्जवसिए' जो नो संयत नो असंयत नो संयता. संयतरूप सिद्ध जीव हैं वे सादि अपर्यवलित होते हैं। __ अन्तर कथन-'संजयस्स संजयासंजयस्स दोण्ह वि अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं' संयत का और संयतासंयत का अन्तर जघन्य से एक अन्तर्मुहत का है इतने काल की समाप्ति के बाद पुनः संयत या संयतासंयत का लाभ हो जाता है तथा उत्कृष्ट से अन्तर अनन्त काल तक का है इसमें अनन्त उत्सपिणियां और अनन्त अवसर्पिणियां समाप्त हो जाती हैं और क्षेत्र की अपेक्षा कुछ कम अर्धपुद्गल परावर्त काल समाप्त हो जाता है । इतने काल के बाद पूर्व में अवाप्त संयम वाले ,जीव को पुनः नियम से संयम का लाभ हो जाता है। 'असंजयस्स आदि दुवे णत्थि अंतरं' अनादि अपर्यवसित असंयत के और अनादि सपर्यवसित असंयत के अन्तर नहीं होता है क्योंकि प्रथमविकल्प का असंयत अपर्थवसित है तथा द्वितीय प्रकार नो संजयासंजए सादीए अपज्जवासिए २ ना सयत ना मसयत सयता સંતરૂપ સિદ્ધ જીવ છે તેઓ સાદિ અપર્યવસિત હોય છે. અંતર દ્વારનું કથન ___ 'संजयस्स संजयासंजयस्स दोण्ह वि अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्त' સંયતનું અને સંયતાસંયતનું અંતર જઘન્યથી એક અંતમુહૂર્તનું છે. એટલે કાળ સમાપ્ત થયા પછી ફરીથી સંયત અથવા સંયતાસંતપણા નો લાભ થાય છે. તથા ઉત્કૃષ્ટથી અનંતકાળ પર્યતનું અંતર હેય છે. એમાં અનંત ઉત્સર્પિણી અને અનંત અવસર્પિણી સમાપ્ત થઈ જાય છે. અને ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી કંઈક એ છે અર્ધપુદ્ગલ પરાવતકાળ સમાપ્ત થઈ જાય છે. એટલા કાળ પછી પહેલાં પ્રાપ્ત કરેલ સંયમવાળા જીવને ફરીથી नियमयी संयम न alR लय छे. 'असंजयस्स आदि दुवे णत्थि अंतरं' અનાદિ અપર્યવસિત અસંયતને અને અનાદિ સપર્ય વસિત અસંયતને અંતર
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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