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________________ १३८६ जीवाभिगमसूत्रे र्मुहूर्तम् | 'अप्पा बहु० सव्वत्थोवा अणागारोवउत्ता' सर्वस्तोका अनाकारोपयुक्ताः, अल्पबहुत्व विचारे' 'सागारोवउत्ता असंखेज्जगुणा' साकारोपयुक्ता असंख्येयगुणाः' अथोपसंहरति- 'सेत्तं दुविधा सव्वजीचा पन्नत्ता' इत्यं सर्वजीवा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, विचार्य व्युत्पादिता इति ॥ सू० १४३ || सम्प्रति त्रिविधवक्तव्यतामाद मूलम् - तत्थ णं जे ते एवमाहंसु तिविहा सव्दजीवा पन्नत्ता ते एवमाहं तं जहा सम्मदिट्टि, मिच्छादिट्टो । 'सम्सदिट्टीणं भंते । कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा | सम्मदिट्टी दुविहे पन्नत्ते तं जहा - साईए वा अपजवसिए साईए वा सपजव सिए, तत्थ णं जे से साईए सपज्जबसिए से जहन्नेणं अंतोमुद्दत्तं उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोत्रसाई साइरेगाई | मिच्छा दिट्ठी तिविपन्नत्ते तं जहा - साइए वा सपज्जवसिए अजाईए वा अपजवसिए अणाईए वा सपजवसिए तत्थ णं जे ते साईए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अव पोग्गलपरिषद्धं देणं सम्मामिच्छादिट्टी जहन्नेणं अंतोमुहुर्त्त उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । सम्मदिट्टिस्स अंतरं साइयस्स अपज्जवसिवस्स नत्थि अंतरं साईयस्स सपज्जवसियरस जहन्नेणं सबसे कम हैं और साकारोपयुक्त जीव इन से असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'से तं दुविहा' इस प्रकार से समस्त जीव दो प्रकार के कहे गये हैं यहां पर इस विषय को संग्रह करके प्रकट करने वाली यह गाथा है 'सिद्ध सइंदियकाए जोए वेए कसायलेस्सा य, णाणुवओगाहारा भास सरीरी य चरमो य' ॥१॥१४३॥ धारै छे. 'सेत्तं दुविहा' मे अभाणे सधना भवेो मे अहारना अड्डेवाभां ઓવેલા છે. અહિયાં આ વિષયના સંગ્રહ કરીને બતાવવા વાળી આ ગાથાં કહેવામાં આવી છે. 'सिद्ध सइंदियकाए जोए वेए कसायलेस्सा य, णाणुवओगाद्दारा भाससरीरी य चरमो य ॥१॥ सू. १४३॥
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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