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________________ १३८५ जीवाभिगमसूत्र उत्कर्पणानन्तं कालं वनस्पतिकालः। 'अभासगस्स.' अभापकस्य भदन्त ! कियकालमन्तरम् ? गौतम ! एप द्विविधः-तत्र 'साईयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं' सादिकस्यापर्यवसितस्यान्तरं नास्ति, 'साईय सपज्जवसियस्स जहन्नेणं एक समय-उक्कोसेणं अंतोमुहुत्त' सादिसपर्यवसितस्य जघन्येनैकं समयम्-उत्कर्षेणाऽन्तर्मुहूर्तम् । 'अप्पाबहु०' अल्पवहुत्वं भदन्त ! भापकाणामभापकाणां च कतरे कतरेभ्यः प्रतीक्षन्ते ? भगवानाह-गौतम ! 'सव्वत्थोवा भासगा' सर्वस्तोकाः भाषकाः 'अभासगा अणंतगुणा' अभापका अनन्तगुणाः । 'अहवा-दुविहा सव्वजीवा' अथवा द्विभेदवन्तः सर्वजीवाः, तद्यथा-ससरीरी य-असरीरीय असरीरी कहते हैं-हे गौतम ! 'जहण्णणं अंतोमुहुत्तं उक्को० अणंत कालं वणस्सहकालो' भाषक का अन्तर काल जघन्य से तो अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल प्रमाण है । 'अभासग साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं' सादि अपर्यवसित अभाषक का अन्तर काल अभाषक की अपर्यवसितता में है ही नहीं और जो सादि अपयवसित अभाषक है उसका अन्तर काल जघन्य से तो "एक समयं एक समय का है और 'उक्कोसेणं अंतो०' उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त का है। . अल्पबहुत्व विचार-'अप्पा बहु० सव्वत्थोवा भासगा, अभा. सगा अणंतगुणा' इन भाषक और अभाषकों के बीच में सबसे कम भाषक हैं और अभाषक इनसे संख्यातगुणें अधिक हैं। 'अहवा-दुविहा सव्व जोवा सरीरी अससरीरी य' अथवा सशरीर और अशरीर के भेद से समस्त जीव दो प्रकार के हैं । असिद्ध 'जहण्णेणं अंतोमुहुत्त उकोसेणं अणतं कालं वणस्सइ कालो भाषन मत२४ જઘન્યથી તે એક અન્તર્મુહૂર્તને છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી વનસ્પતિકાળ પ્રમાણે छ. 'अभासगस्स साइयरस अपज्जवसियस्स णत्थि अंतर' साह भयवसित અભાષકને અંતરકાળ અભાષકના અપર્યવસિત પણમાં છે જ નહીં અને જે सा सप वसित मलाष छ तर मत२४॥ धन्यथी तो 'एक्कं समय" मे सभयना छ भने 'उनकोसेणं अतोमुहुत्त' अष्टथी मे मत. भुतना छे. અલ્પબદ્ધત્વને વિચાર– ___ 'आप्पा बहु सव्वत्थोवा भासगा अभासा अणंतगुणा' मा माष४ भने ભાષકમાં સૌથી ઓછા ભાષક છે. અને અભાષક તેનાથી અનંતગણું धारे छ. 'अहवा दुविहा सव्वजीवा ससरीरी य असरीरी य' मथवा सशरीर અને અશરીરના ભેદથી સઘળા જ બે પ્રકારના છે. અસિદ્ધોને સશરીર
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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