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________________ जीवाभिगम १३०८ गौतम ! ' सव्वत्थोवा पंचिदिया' सर्वस्तोकाः पञ्चेन्द्रियाः संख्येययोजनकोटिप्रमाण विकम्ममूची प्रमितप्रतरासंख्येयभागवर्त्य संख्ये यश्रेणीगताकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् । ' चउरिंदिया विसेसाहिया' ततः पूर्वस्माच्चतुरिन्द्रिया विशेषाधिकाः विष्कम्भसूच्या स्नेषां प्रभूतसंख्ये प्रयोजनकोटिकोटीप्रमाणत्वात् । 'वेइंदिया विसेसाहिया' ततो द्वोन्द्रिया विशेषाधिकाः तेषां विष्कम्भसूच्याः प्रभूततमसंख्येययोजनकोटिकोटि प्रमाणन्वात् । 'तेउकाइया असंखेज्जा' ततस्तेजाती है और क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात लोक आ जाते है इनके अल्पबहुत्व के प्रश्न के उत्तर में इस प्रकार का कथन है 'सव्वत्थोवा पंचिदिया' पञ्चेन्द्रिय जीव सब से कम हैं क्योंकि इनका प्रमाण संख्यात योजन कोटी कोटी प्रमाण जो विष्कम्भ सूची है उस सूची : प्रमित प्रतर के असंख्यातवें भाग में जितनी असंख्यात श्रेणियां हैं - उन श्रेणियों में जितनी आकाश प्रदेश राशि है उसके बराबर है इनकी अपेक्षा - 'चउरिंदिया विसेसाहिया' चौइन्द्रिय जीव विशेषाधिक है क्योंकि इनका प्रमाग विष्कम्भ सूची के प्रभूत संख्यात योजन कोटी कोटी गत आकाश प्रदेश राशि के बराबर कहा गया है इनकी अपेक्षा 'तेइंदिया विसेसाहिया' तेइन्द्रिय जीव विशेषाधिक 'हैं क्योंकि इनका प्रमाण विष्कम्भ सूची के प्रभूततर असंख्यात योजन कोटी कोटीगत आकाश प्रदेशराशि के बराबर कहा गया है 'वेइंदिया 'विसेसाहिया तेक्वाइया असंखे० पुढविका० आउ० वाउ० विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अनंतगुणा' दोइन्द्रिय जीवों का प्रमाण इनकी સર્પિણિયો સમાપ્ત થઇ જાય છે તેમના અલ્પ બહુત્વના પ્રશ્નના ઉત્તરમાં આ प्रास्तु' स्थन उरेस छे, 'सव्वत्योत्रा पंचिदिया' पथेन्द्रिय त्र सोथी माछा छे. ડેમકે તેમનુ પ્રમાણ સખ્યાત યોજન કેટિ કોટિ પ્રમાણુ જે વિષ્ણુભ સૂચી છે. એ સૂચીથી પ્રમિત પ્રતરના અસખ્યાતમાં ભાગમાં જેટલી અસંખ્યાત શ્રેણિયો છે એ શ્રેણિયોમાં જેટલી આકાશ પ્રદેશ રાશી છે. તેની ખરેખર છે. तेना ४२तां 'चउरिंदिया विसेस हिया' या२ द्रियवाणा भवे। विशेषाधिक छे. કેમકે તેમનું પ્રમાણુ વિષ્ણુભ સૂચીના પ્રભૂત સંખ્યાત ચેાજન કોટી કોટી ગત આકાશ પ્રદેશ રાશિની ખરેાખર કહેવામાં આવેલ છે. તેના કરતાં તૈરૂયિા विसेसहिया' | 'द्रियवाजा व विशेषाधिः छे डेम - तेनु प्रभाणु विष्कुल સૂચિના પ્રભૂતતર અસ`ખ્યાત ચેાજન કેટી કાઢી ગત આકાશ પ્રદેશ રાશીની मरोमर अडेवामां आवे छे, 'वेइंदिया विसेसाहिया, तेउक्क. इया असंखे० पुढवि -
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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