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________________ १३०४ fierमगमसूत्रे ॥ नवविध प्रतिपत्तिः ॥ टीका- 'तत्थ णं जे ते एवमाहंसु णवविहा संसारसामावन्नगा जीवा ते एवमा पुढवाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया, इंदिया- ते इंदिया - चउरिंदिया पंचिदिया' तत्र खलु ये ते दयार्द्रचित्ता एवमुक्तवन्तो - नवविधाः संसारसमापन्नका जीवाः सन्ति त एवमुक्तवन्तः - पृथिवीकायिकाः अष्कायिकाः तेजस्कायिकाः वायुकायिकाः वनस्पतिका यिकाः द्वीन्द्रियात्रीन्द्रियाश्चतुरिन्द्रयाः पञ्चेन्द्रियाः, त एते चत्वारस्त्रसा संकलनया नवविधा जीवाः प्रदर्शिताः । अथैषां स्थितिः 'ठिई सव्वेसिं भाणि - roat' स्थिति fवानां भणितव्याः । तथाहि - पृथिवीकायिकस्य जघन्यतोऽन्तमुहूर्तम् उ कर्पतो द्वाविंशतिर्वर्षसहस्राणि १ अष्कायिकस्याऽन्तर्मुहूर्तम् - सप्तवर्ष - अष्टमी प्रतिपत्ति 'तत्थण जे ते एवमाहंसु नवविधा संसार समावन्नग जीवा' - ई० । टीकार्थ- गौतम से प्रभु ऐसा कह रहे हैं कि जिन आचार्यो ने ऐसा कहा कि संसारी जीव नौ प्रकार के हैं उन्होंने इस सम्बन्ध में ऐसा विवेचन किया है - 'पुढवीकाइया आक्काइया, उक्काइया, घाउकाइया, वणस्सइकाइया, वेइंदिया, तेइंदिया, 'चउरिंदिया, पंचिंदिया' पृथिवीकायिक १ अष्कायिक २ तेजस्कायिक ३ वायुकायिक ४ वनस्पतिकायिक ५ दोइन्द्रिय ६ तेइन्द्रिय ७ चौइन्द्रिय ८ और पंचेन्द्रिय ९ इस प्रकार के संसारी जीव हैं 'ठिई सव्वेसि भाणियव्वा' यहाँ सब की स्थिति का वर्णन करना चाहिये-जैसे पृथिवीकायिक एकेद्रिय की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति २२ हजार वर्ष की है। अकाधिक जीवों की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की નવમી પ્રતિપત્તિના આરભ 'तत्थ णं जे ते एवमाहंसु नवविहा संसारसमावन्नगजीवा' इत्याहि. ટીકા-ગૌતમસ્વામીને પ્રભુશ્રી એવુ' કહે છે કે જે આચાર્ચ/એ એવું હેલ કે–સ'સારી જીવ નવ પ્રકારના છે. તેઓએ આ સમધમાં એવુ' अडेस छे है–'पुढवीकाइयां आउकाइया, तेउकाइया; वाउकाइया, वणस्सइकाइया, इंदिया, ते इंदिया, चउरिंदिया, पंचि दिया' पृथ्वी आय १ सय २ तेन्स्य ૩ વાયુકાયિક ૪ વનસ્પતિકાયિક પ એ ઈંદ્રિય ૬, તે ઇન્દ્રિય છ, ચૌઇંદ્રિય ૮ ाने यथेन्द्रिय ८ भा रीते नव प्रहारना संसारी भवे छे. 'ठिई सव्वेसिं भाणियव्वा' अडीयां मधानी स्थितिनु वार्जुन ४री सेवु लेामे नेभ-पृथ्वी કાયિક એકેન્દ્રિયની જઘન્ય સ્થિતિ અંતર્મુહૂતની છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૨૨ ખાવીસ હજાર વર્ષની છે, અષ્ઠાયિક જીવાની જઘન્ય સ્થિતિ એક અત
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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