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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.५ सू.१३४ निगोदस्वरूपनिरूपणम् १२५३ भगवानाह-गौतम ! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-सूक्ष्म निगोदाश्च सर्वलोकपन्ना बांदरनिगोदाश्च-मूलकन्दादयः । 'सुहुम णिओयाणं भंते ! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य' सूक्ष्मनिगोदाः खलु भदन्त ! कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! द्विविधाः तद्यथा-पर्याप्ताश्चाऽपर्याप्ताश्च । "बायर णिओयां वि दुविहा पन्नत्ता-तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य' बादर निगौदा अपि द्विविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-पर्याप्ताश्चाऽपर्याप्ताश्च । ' ___ अथ निगोदजीवान् दर्शयति-निओयजीवा णं भंते ! कंइविहा पन्नत्ता? दुविहा पन्नत्ता तं जहा-सुहुम निओयजीवा य वायर निओयजीवा य' निगोदय घायर णिोया ये सूक्ष्म निगोद और बादर निगोद समस्तलोक में सूक्ष्म निगोद तिल में तैल की तरह भरे हुए रहते हैं मूलकन्दादि रूपं जो जीव विशेष हैं वे बाद निगोद हैं। पुनः प्रश्न-'सुहुम णिओयाणं भंते ! कति विहा प०' हे भदन्त ! सूक्ष्म निगोद कितने प्रकार के कहे गये है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! दुविहां पण्णत्ता' हे गौतम ! सूक्ष्म निगोद दो प्रकार के कहे गये हैं 'तं जहा' जैसे-'पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा ये पर्याप्तक और अपर्याप्तक इसी प्रकार से 'बायरणिओया वि दुविहा पण्णत्ता' बादर निगोद भी दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा' जैसे-'पज्जत्तगा य अपज्जत्तगायबादर, पर्याप्तक और बादर अपर्याप्तक 'णिओगजीवाणं भंते ! कति विहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! निगोद जीव कितने प्रकार के कहे है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं ? 'दुविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! निगोद जीव दो बोयरणिओयाय' सूक्ष्म नि म मा नि समस्तमा सूक्ष्म निगाह તલમાં તેલની જેમ ભરેલા રહે છે. મૂળ કન્ટ વિગેરે રૂપ જે જીવ વિશેષ छ; ते मा४२ निगाह छे. प्रश्न 'सहमणिओयाणं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता' ભગવન સૂક્ષ્મ નિગદ કેટલા પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री ४९ छ है-'गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता' ३ गौतम ! सूक्ष्म निगोह में प्रधान। वाम गावेस छ. 'तं जहा' रेभ 'पज्जत्तगाय अपज्जत्तगाय' पर्याप्त मन मर्यात मे प्रमाणे "बायरणिओयावि दुविहा पण्णत्ता' मा४२ निगाह ५ मे आनापामा मावत छ 'तं जहा' 'पज्जत्तगाय अपजित्तगाय' मा६२ पर्यास सन मा६२ अपर्यात 'णिओगजीवाणं भंते ! कति विहा पण्णत्ता भगवन् नि सा प्रश्न उवामां आवे छे. प्रश्नमा उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'दुविहा पण्णत्ता' गौतम ! निगाह
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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