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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.५ सू.१३३ वादरादीनामल्पवहुत्वनिरूपणम् १२३९ एभ्योऽपर्याप्तवादरवायुकायाः क्रमगत्या पूर्वपूर्वभ्योऽसंख्येयगुणाः । 'वायरवणस्सइ पज्जत्तगा अणंतगुणा' पर्याप्तका वादरवनस्पतिकायाः पूर्वस्मादनन्तगुणाः। प्रतिवादरैकैकनिगोदमनन्तानां जीवानां भावात् । 'वायर पज्जत्तगा विसेसाहिया' तेभ्यः सामान्य पर्याप्तवादरा विशेषाधिकाः पर्याप्तवादरतेजस्कायिकादीनामपि तत्र प्रक्षेपात् । 'वायरवणस्सइ अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' अपर्याप्तवादरवनस्पतिकाया असंख्येयगुणाः एकैकपर्याप्तवादर वनस्पतिकायिकनिगोदनिःश्रयाऽसंख्येयानामपर्याप्त बादरवनस्पतिकायिकनिगोदानामुत्पादात् गुणें अधिक हैं, 'पायर पुढची आउ वाउ अपज्जत्तगा' इनकी अपेक्षा अपर्याप्त बादरपृथिवीकायिक अपर्याप्त वादरथिवीकायिकों की अपेक्षा अपर्याप्त बाद अप्कायिक, बादर अप्कायिक अपर्याप्तकों की अपेक्षा अपर्याप्त बादर वायुकायिक असंख्यातशुणे अधिक हैं। 'वायर वणस्सइ पज्जत्तगा अणंतगुणा' अपर्याप्त बादर वायुकायिकों की अपेक्षा पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक अनन्तगुणें अधिक हैं । क्योंकि हर एक चादर रूप एक एक निगोद में अनन्त जीवों का सदभाव रहता है । 'वायर पज्जत्तगा विसेसाहिया' पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिकों की अपेक्षा सामान्य वादर पर्याप्त जीव विशेषाधिक हैं। क्योंकि सामान्य बाद पर्याप्तक जीवों में पर्याप्त बादर तेजस्कायिक का अन्तर्भाव हो जाता है। 'बायर वणस्सइ अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' सामान्य बाद पर्याप्तक जीवों की अपेक्षा बादर वनस्पति अपर्याप्तक जीव असंख्यानगुणे अधिक हैं। क्योंकि एक २ चादर मस ज्यात पधारे छे. 'वायर पुढवी आउ वाउ अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' અપર્યાપક બાદર નિગોદના કરતાં અપર્યાપ્તક બાદર પૃથ્વી કાયિક અપર્યાપ્તક બાદર પૃથ્વીકાચિકેના કરતાં અપર્યાપ્તક બાદર અષ્કાયિક અપર્યાપ્ત બાદર અપ. विडीना ४२di अपर्याप्त मा४२ वायुायि। मसध्यातमा धारे छ. 'वायर वणस्सइ पज्जत्तगा अणंतगुणा' अपर्याप्त मा६२ वायुविना ४२di पर्याप्त બાદર વનસ્પતિકાયિક અનંતગણું વધારે છે. કેમકે-દરેક બાદર રૂપ એક એક निगोहमा सनत वन समाप २९ छे. 'वायर पज्जत्तगा विसेसाहिया' પર્યાપ્તક બાદર વનસ્પતિકાચિકેના કરતાં સામાન્ય બાદર પર્યાપ્તક જીવ વિશેધિક છે. કેમકે સામાન્ય બાદર પર્યાપ્તક માં પર્યાપ્ત બાદર તેજસ્કાયિકને मधाम सतर्भाव २४ लय छे. 'वायर वणन्सड अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' સામાન્ય પર્યાપ્તક જેના કરતાં બાદર વનસ્પતિ અપર્યાપ્તક જીવ અસંખ્યાત ગણું વધારે છે. કેમકે એક એક બાદર પર્યાપ્તક વનસ્પતિકાયિક નિગોદના
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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