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________________ १२०६ जीवामिगमसूत्र दोनाप्यत्र समावेशात् । 'मुहुगवणस्सइ पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' पर्याप्तसूक्ष्मवनस्पतिकायाः संख्येयगुणा अपर्याप्तक सूक्ष्माऽपेक्षया 'सुहुमा पज्जत्तगा विसेसाहिया' सूक्ष्मपर्याप्तकवनस्पतिकायापेक्षया सामान्यतः सूक्ष्माः पर्याप्ताविशेपाधिका भवन्ति इति । पश्चमाल्पबहुत्वम् ॥सू० १३१॥ संप्रति वादरादीनां स्थित्यादिकमाह मूलम्-बायरल णं संते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोसुहत्तं उकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता एवं बायर तसकाइयस्स वि बायर पुढवीकाइयस्स बावीसवाससहस्साइं बायर आउस्स सत्तवाससहस्सं, बायरतेउस्ल तिन्नि राइंदिया, वायरवाउस्स तिषिणवाससहस्साई बायर वणस्तइकाइयस्स दसवाससहस्साइं, एवं पत्तेय. सरीरबायरस्स वि, निओबस्त जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, एवं वायागिगोदस्स वि, अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं अंतोमुहत्तं, एज्जत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमुहतूणा कायदा सव्वेसि । बायरे णं भंते ! बायरे ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोलेणं असंखेज्जं कालं को जो विशेषाधिक कहा गया है उसका कारण सूक्ष्म पर्याप्तक पृथिवीकायादिकों का इसमें अन्तर्भाव हो जाता है । सामान्य सूक्ष्म अपर्याप्तकों की अपेक्षा 'सुहम वणस्सइ पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्तक संख्घातगुणें हैं। 'सुहम पज्जत्तगा विसेसाहिया' सूक्ष्म पर्याप्तक वनस्पतिकायिकों की अपेक्षा सामान्य सूक्ष्म पर्याप्तक विशेषाधिक हैं क्योंकि इनमें पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायादिकों का समावेश हुआ है। यह इनका पांचवां अल्पबहुत्व है॥१३१॥ કહ્યા છે, તેનું કારણ સૂક્ષ્મ અપર્યાપ્તક પૃથ્વીકાયિોને તેમાં અંતર્ભાવ થયેલ छे. सामान्य सूक्ष्म अपर्याप्तीना ४२तां 'सुहुमवणस्सइ पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्त सच्यात छ. 'सुहुम पज्जत्तगा विसेसाहिया' સૂકમપર્યાપ્તક વનસ્પતિકાચિકેના કરતાં સામાન્ય સૂક્ષ્મ પર્યાપ્તક વિશેષાધિક છે. કેમકે પર્યાપ્તક સૂફમ પૃથ્વીકાયિકોને તેમનામાં સમાવેશ થયેલ છે. આ તેનું પંચમું અ૫ બહુ પણું કહેલ છે. તે ૧૩૧ છે
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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