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________________ १२०४ जीवाभिगमसूत्र भ्योऽल्पा वा ४ ? भगवानाह-गौतम ! सव्वत्थोवा मुहुमतेउकाइया अपजतगा' अपर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकाः सर्वस्तोकाः, 'सुहमपुढवीकाइया अपज्जतगा विसेसाहिया' अपर्याप्त-सूक्ष्मपृथिवीकाया विशेपाधिकास्तेजस्कायिकेभ्यः 'मुहुमआउ अपज्जत्तगा विसेसाहिया' एभ्यः सूक्ष्माप्कायिका अपर्याप्तका विशेषाधिकाः 'मुहुम घाउ अपज्जत्तगा विसेसाहिया' एभ्यः सूक्ष्माऽपर्याप्तकवायुकायिकाविशेषाधिकाः 'सुहुम तेउकाइया पजत्तगा संखेज्जगुणा' एभ्यस्सूक्ष्मतेजस्का. सुहुम पुढविकाइयाणं जाव सुहमणिओयाण य पज्जत्ता पज्जत्ता० कयरे कयरेहितो' हे भदन्त ! ये जो सूक्ष्म पृथिवीकायिक से लेकर सूक्ष्म निगोद तक के जीव पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोनों प्रकार के हैं सो उनमें कौन किनकी अपेक्षा अल्प है ? कौन किनकी अपेक्षा बहुत हैं कौन किनके बराबर है। और कौन किनसे विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सव्वत्थोवा सुहुम तेउकाड्या०' हे गौतम !सबसे कम सूक्ष्म अपर्याप्तक तेजस्कायिक जीव हैं 'सुहुम पुढवि काइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' अपर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकों की अपेक्षाअपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक विशेषाधिक हैं । 'सुहुम आउ अपज्जत्ता, विसेसाहिया' अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकों की अपेक्षा सूक्ष्म अपर्याप्तक अपकायिक विशेषाधिक हैं। 'सुहुम वाउ अपज्जत्ता विसेसाहिया' अपर्याप्तक अप्कायिकों की अपेक्षा सक्षम अपर्याप्तक वायुकायिक विशेषाधिक हैं । 'सुहुम तेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्म अपर्याप्तक वायुकायिकों की अपेक्षा सूक्ष्म पर्याप्तक तेजस्काकाइयाणं जाव सुहुमणिओयाणय पज्जत्तापज्जत्ता० कयरे कयरे 'हिंतो' ભગવદ્ ! આ સૂક્ષમ પૃથ્વીકાયિકથી લઈને સૂક્ષમ નિગદ સુધીના જે પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક બન્ને પ્રકારના જીવે છે. તે તેમાં કેણ કેના કરતાં અલ્પ છે? કે કેના કરતાં વધારે છે? કોણ કેની બરાબર છે? અને કેણ કેનાથી विशेषाधि छ ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छे 3-'सव्वत्थोवा सुहुमतेउका. इया०' गौतम ! सौथी माछ। सूक्ष्म अर्थात ४२४यि । छ. 'सुहमपुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीयिटीना ४२di सूक्ष्म अपर्याप्त माथि विशेषाधि छ. 'सहुम वाउ अपज्जत्तगा विसेसाहिया અપર્યાપ્તક અષ્ઠાયિકેના કરતાં સૂક્ષ્મ અપર્યાપ્તક વાયુકાયિકે વિશેષાધિક છે. 'सुहुम तेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्म अपर्याप्त वायुयना ४२di सूक्ष्म पर्याप्त यि सभ्यात! पधारे छे. 'सुहुम पुढवीआउवाउ पज्ज
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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