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________________ प्रमेययोतिका टीका प्र.५ सू.१२९ पृथ्वीकायादि पण्णामल्पवहुत्वनिरूपणम् १९८७ त्तगा असंख्येयगुणा' तेजस्कायिका अपर्याप्तका असंखेज्जगुणाः (एतदेषां वैलक्षण्यं पूर्वापेक्षया)। 'पुढवि काइया आउक्काइया वाउकाइया-अपज्जत्तगा विसेसाहिया' (अपर्याप्तक तेजस्कायापेक्षया) अपर्याप्तकपृथिवीकायिका एभ्योऽप्कायिक अपर्याप्तका विशेषाधिकाः तेभ्यो वायुकायिकाः अपर्याप्तका विशेषाधिकाः 'तेउक्काइया पज्जत्तगा संखेगुणा' तेभ्यो वायुभ्यस्तेजस्कायाः पर्याप्तकाः संख्येयगुणाः सूक्ष्मेषु पर्याप्तकानामपयोप्तेभ्यः संख्येयगुणत्वात् । 'पुढवी आउ वाउ पज्जत्तगा विसेसाहिया' पर्याप्तक पृथिवीकायास्तेभ्योऽप्कायास्तेभ्यो वायुइनकी अपेक्षा जो अपर्याप्तक तेजस्कायिक जीव हैं वे असंख्यातगुणे अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'पुढविकाइया, आउकाइया वाजकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' जो अपर्याप्तक पृथिवीकायिक अकायिक एवं वायुकायिक जीव हैं वे विशेषाधिक हैं 'तेउक्काइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, पुढवि आउ वाउ पज्जत्तगा विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा तेजस्कायिक पर्याप्तक संख्यातगुणें अधिक हैं । इनकी अपेक्षा जो पर्याप्तक पृथिवीकायिक अप्कायिक, और वायुकायिक जीव हैं वे - विशेषाधिक हैं । अपर्याप्त तेजस्कायिकों को असंख्यातगुणा अधिक बतलाया गया है उसका कारण ऐसा है कि ये असंख्यात लोकाकाश के प्रदेशों के बराबर हैं। फिर अपर्याप्तक पृथिवी, अपू, और वायुकायिकों को जो विशेषाधिक कहा गया है वह क्रमशः इनकी राशि प्रभूत प्रभूततर और प्रभूततम असंख्यात लोकाकाश के प्रदेश राशि के बराबर कही गई है इसलिये कहा गया है। बाकी का कथन स्पष्ट [४ ७ तेना ४२di मसभ्याता धारे छ. 'तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणो' तेना ४२त २ अपर्याप्त यि ७१ छे. तेयो मसभ्यात गया धारे छे. तेना ४२di ‘पुढविक्काइया, आउकाइया, वाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' २ अर्यात वीयिर, अयि मन वायुयि४ १ छे. तथा विशेषाधि छ. 'तेउकाइयो पज्जत्तगा संगेजगुणा, पुढविआउवाउ पज्जत्तगा विसेसाहिया' तेना ४२ता पर्यात ४२४५४ सध्या पधारे छे. તેના કરતાં જે પર્યાપ્તક પૃથ્વીકાયિક જીવ અષ્કાયિક જીવ અને વાયુકાયિક જીવ છે તે બધા વિશેષાધિક છે. અપર્યાપક તેજસ્કાયિકેને અસંખ્યાતગણું વધારે બતાવવામાં આવેલ છે તેનું કારણ એવું છે કેતેઓ અસંvયાત લોકાકાશના પ્રદેશોની બરાબર છે. અને અપર્યાપ્તક પૃથ્વીકાયિક, અષ્કાયિક, અને વાયુકાયિકને જે વિશેષાધિક કહેવામાં આવેલ છે. તે ક્રમશઃ તેમની રાશિ પ્રભૂત પ્રભાતર અને પ્રભૂતતમ અસંખ્યાત કાકાશના પ્રદેશ રાશિની બરાબર કહેલ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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