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________________ प्रभैयद्यातिका टीका प्र.३ उ मे १२१ देवविमान पृथिव्याः वाहल्यादिकम् १०६९ वृत्तं चत्वारि विजयादि अनुत्तर विमानानि त्र्यखाणीति । आयामविष्कम्भप्रमाणमाह - 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केवइयं आयामविक्खंभेणंकेवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ता ? गोयमा ? दुविहा पन्नत्ता - तं जहा - संखेज्जवित्थडा य - असंखेज्ज वित्थडा य - जहा परगा तहा जाव अणुत्तरोववाइया संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य' सौधर्मेशान कल्पयोः खलु भदन्त ! विमानानि कियन्ति - आयामविष्कम्भेण कियन्ति परिक्षेपेण प्रज्ञप्तानि ? भगवानाह - गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - संख्येयविस्तृतानि च, असंख्येयविस्तृतानि च यथा नरकाः तथा यावदनुत्तरोपपातिका: संख्येयविस्तृतानि च असंख्येयविस्तृतानि आयामविष्कम्भ परिमाण कथन - 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पे विमाणा केवइयं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता' हे भदन्त ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमान कितने लम्बे और चौडे कहे गये हैं ? और 'केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ता' कितने परिक्षेप वाले कहे गये है इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता' हे गौतम! सौधर्म और ईशान में विमान दो प्रकार के कहे गये हैं- 'तं जहा' जैसे'संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य' एक संख्यात विस्तार वाले और दूसरे असंख्यात विस्तार वाले 'जहा णरगा तहा जाव अणुतरोववाइया संखेज वित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य' इस सम्बन्ध में जैसा कथन नरकों के प्रकरण में कहा गया है वैसा ही कथन यात् 'अनुत्तरोपपातिक विमान संख्यात विस्तार वाले और असंख्यात विस्तार वाले होते हैं यहां तक कह लेना चाहिये 'तत्थ णं 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केवइयं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता' हे ભગવન્ સૌધમ અને ઈશાન કલ્પમાં વિમાના કેટલા લાંખાં અને પહેાળા છે? भ्भने ‘केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ता' डेंटला परिक्षेपवाजा अहेवामां आवेला छे ? श्या प्रश्नना उत्तरभां अलुश्री हे छे है- 'गोयमा । दुविहा पण्णत्ता' हे गौतम! સૌધર્મ અને ઈશાન કલ્પમાં વિમાના એ પ્રકારના કહેવામાં આવેલા છે. 'तं जहा' ? या अभागे छे. - 'संखेज्जवित्थडाय असंखेज्जवित्थडाय' ये सध्यात विस्तारवाजा मने मील असंख्यात विस्तारवाजा 'जहा णरगा तहा जाव अणुत्तरोत्रवाइया संखेज्ज वित्थडाय असंखेज्जवित्थडाय' मा समधभां नारना પ્રકરણમાં જે પ્રમાણેનું કથન કરવામાં આવેલ છે. એજ પ્રમાણેનુ' કથન યાવત્ અનુત્તર પપાતિક વિમાન સખ્યાત વિસ્તારવાળા અને અસખ્યાત વિસ્તાર बाजा होय छे. न्यासा सुधीनु अथन अड्डी तेवु' लेखे, 'तत्थ णं जे से
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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