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________________ १०३२ जीमाभिगममने पन्नत्ताओं' नवरमष्टौ देवसहस्राणि, 'मज्झिमियाए०' मध्यमिकायाम्-'दसदेवसाहस्सीओ०' दशदेवसहस्राणि, 'बाहिरियाए प०' बाह्यायां पर्पदि 'वारसदेवलाहस्सी ओप०' द्वादशदेवसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । अत्र देवी पर्पदो न वक्तव्याः तथा 'अभितरियाए परिसाए देवाणं ठिई अद्धपंचमाई सागरोबमाई पंच पलिओक्माई ठिई पणत्ता मज्झिमियाए परिसाए अद्ध पंचमाई सागरोवमाइ चत्तारि पलिओषमाइ ठिई पन्नत्ता बाहिरियाए परिसाए अद्ध पंचमाई सागरोवमाई तिन्नि पलिओवमाई ठिई पन्नत्ता अट्ठो सो चेत्र' आभ्यन्तरिकायाम्-अर्धपञ्चमसागरोपमानि पञ्चपल्योपमानि स्थितिः, मध्यमिकायाम्-अर्धपश्चमानि सागरोपमाणि चत्वारि पल्योपमानि, वाह्यायामर्द्धपश्चमानि सागरोपमाणि त्रीणि पल्योपमानि यावदेवानां के जो देव हैं उनकी संख्या आठ हजार है। 'मज्झिमियाए परिसाए दसदेव साहस्सीओ प०' मध्यपरिषदा में जो देव हैं उनती संख्या दस हजार है 'बाहिरियाए परिसाए वारसदेव साहस्सीओ पण्णत्ताओ' बोह्यपरिषदा में जो देव हैं उन की संख्या १२ हजार है 'अभितरियाए परिसाए देवाणं अद्ध पंचमाई सागरोवमाई चत्तारि पलिओवमाइं ठिती प०' आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति ४॥ सागरोपम की और पाँच पल्योपम की है 'मज्झमियाए परिसाए अद्धपंचमाई सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाई ठिती प०' मध्यपरिषदा के देवों की स्थिति ४॥ सोगरोपम की और चार पल्योपम की है 'वाहिरियाए परिसाए अद्धपंचमाइं सागरोधमाई तिणि पलिओवमाई ठिती प०' बाघपरिषदा के देवों की स्थिति ४॥ सागरोपम की और तीन पल्योपम की है। 'अट्ठो सो चेव' इन सब का कार्य पूर्ववत् छ तभनी सभ्य! -18 उतरनी छ. 'मज्झिमियाए परिसाए दस देव साहस्सीओ षण्णत्ताओ' मध्यम परिहान वानी स य स हुनी छे. 'बाहिरियाए परिसाए वारस देव साहस्सीओ पण्णत्ताओ' माह परिहाना हेवोनी सध्या १२ मा उनी छे. 'अभितरियाए परिसाए देवाणं ठितो अद्ध पंचमाई सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाइं पण्णत्ताई' माय २ परिषदान वानी स्थिति ४॥ सा! यार साग।५म म पांय पक्ष्योपभनी छ, 'मन्झिमियाए परिसाए अद्व पंचमाई सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता' मध्यम परिપદાના દેવેની સ્થિતિ કા સાડા ચાર સાગરોપમ અને ચાર પોપમની છે, 'वाहिरियाए परिसाए अद्धपंचमाई सागरोवमाइं तिण्णि पलिओवमाई ठिती,पण्णत्ता' બાહ્ય પરિષદાના દેવાની સ્થિતિ કા સાડા ચાર સાગરોપણ અને ત્રણ પલ્યાमनी उस छे. 'अट्ठो सो चे' 240 मधानु य पडसाना इथन प्रमाणु
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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