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________________ ___ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. १६९ शक्रादिदेवानां परिपदादिनि० १०२५ तरियाए परिसाए देवीणं तिन्नि पलिओवमाई ठिई पन्नता मज्झिमियाए दुन्निपलिभोवमाई ठिई पन्नत्ता वाहिरियाए परिसाए एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता अट्ठो सो चेव जहा भावणवासोणं 'से केणटेणं भत्ते ! एवं वुच्चइ सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो तओ परिसाओ०' अथाऽत्र देवीनां स्थितिः शक्रस्याऽऽभ्यन्तरिकायांमध्यमिकायां-बाह्यायां च पर्षदि त्रीणि पल्योपमानि-द्वे पल्योपमे-एकञ्च पल्योपमं स्थितिकालः । अर्थः स एव यथा भवनवासिदेवानाम् तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यने शकस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य तिस्रः पर्पदः इत्यादि यथा चमरवक्तव्यतायां सकलसूत्रं वक्तव्यम् । 'कहि णं भंते ! ईसाणकाणं देवाणं विमाणा पन्नत्ता ? तहेव मन जाव ईसाणे एत्थ देविदे देव० जाव विहरइ' कुत्र खलु भदन्त ! ईशानकानां देगनां विमानानि ? कुत्र च ईशाना देवाः परिखकी स्थिति तीन पल्योपम की है 'देवीणं ठिई' देवियों की स्थिति इस प्रकार से है 'अभिलरियाए परिसाए देवीणं तिन्नि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता' आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है मज्झिमियाए दुन्नि पलिओवमाइंठिई पन्नत्ता' मध्यपरिषदा की देवियों की स्थिति दो पल्योपम की कही गई है 'बाहिरियाए परिसाए एग पलिओवर्म ठिई पण्णत्ता' वाह्यपरिषदा की देवीयों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है 'अहो सो चेव जहा भवणवासीणं भवनपतियों के जैसा ही बाकी का और सब कथन यहाँ पर कह लेना चाहिये 'कहिणं भते ! ईसाणकाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता' हे भदन्त ! ईशान देवों के विमान कहाँ पर कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'तहेव सव्वं जाव ईसाणे एत्थ देविंदे देव० जाव विहरई' हे गौतम ! इस सम्बन्ध में समस्त वक्तव्यता सौधर्म की वक्तव्यता जैसी छ, 'देवीणं ठिई हवियानी स्थिति मा प्रमाणे छ–'अभिंतरियाए परिसाए देवीणं तिन्नि पलिओवमाई ठिई पन्नत्ता' मान्यत२ परिषहानी वियानी स्थिति ऋण पक्ष्यायमनी छ. 'मज्ज्ञिमियाए दुन्नि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता' मध्यम परिषहानी वियानी स्थिति में पट्योपभनी हवामां मावेस छ. 'बाहिरियाए परिसाए एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता' माही - परिषहानी हवियोनी स्थिति मे पक्ष्या५मनी छ. अटो सो चेव जहा भवणवासीणं' लवन पतियाना ४थन प्रमाणे १ ाीनु तमाम ४थन महायi xsी नये. 'कहिणं भंते ! ईसाणकाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता लगवन् ! शान वाना विमान। ४यां 83॥ छ ? २0 प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४१ छ -'तहेव सव्वं जाव ईसाणे एत्थ देवि दे देवराया जाव विहरइ' गौतम ! मा विषयमा सघणु ४थन जी० १२९
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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