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________________ 4 जीवामिगमसूत्रे १०२२ खलु भदन्त ! अभ्रस्तनग्रैवेयका देवाः परिवसन्ति यथैव स्थानपदे तथैव एवं मध्यमग्रैवेयकाः उपरितनग्रैवेयकाः अनुत्तराश्च यावत् अहमिन्द्रानाम ते देवाः, प्रज्ञप्ताः श्रमणायुष्मन् ? || सू० ११९ ॥ ॥ इति प्रथमवैमानिकोद्देशः ॥ टीका - 'सकस णं भंते ! देविंदस्स देवरम्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ ? गोमा ! ओ परिसाओ पन्नत्ताओ - तं जहा - समिता, चंडा, जाता, अभितरिया समिया, मज्झमिया चंडा बाहिरिया जाता' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज़शक्रस्य कति पर्षदः सभाः सन्ति ? भगवानाह - हे गौतम ! तिस्रः परिषदः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - समिता १ चण्डा जाता ३ तत्राऽभ्यन्तरिका पर्पत् समितानाम्नी, मध्यमिका चण्डा, वाह्या या ला जाता नाम्नी विश्रुता । 'सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो अभितरिया परिसाए कइ देवसाहस्सीओ पन्नताओ ? 'सक्कस्स णं भते ! देविंदस्स देव रण्णो' इत्यादि । टीकार्थ- गौतम स्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है - हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी परिषदाएं कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु कहते कहते हैं - 'गोयमा ! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ' हे गौतम । तीन परिषदाएं देवेन्द्र देवराज शक्र की कही गई है । 'तं जहा' जिनका नाम इस प्रकार से है - 'समिया चंडा जाया' समिता, चंडा और जाता इनमें 'अभितरिया, समिया, मज्झमिया चंडा बाहिरिया जाया' जो आभ्यन्तर परिषदा है उसका नाम समिता है जो मध्य परिषदा है। उसका नाम चंडा परिषदा है और बाहर की परिषदा है उसका नाम जाया परिषदा है 'सक्कस्स णं भरते । देविंदस्स देवरण्णो अभितरया परिसाए कति देव साहस्सीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! देवेन्द्र 'सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो' धत्याहि 1 ટીકા-ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવું પૂછ્યું' કે હે ભગવન દેવેન્દ્ર દેવરાજ શકની કેટલી પરિષદા કહેવામા આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अलुश्री गौतमस्वामीने हे छे - 'गोयमा । तओ परिसाओ पण्णत्ताओ' गौतभ | ऋणु परिषहामी हेवेन्द्र हेवरान राहुनी उडेल छे. 'तं जहा' तेनु' नाम या प्रमाणे एडेस छे. 'समिया चंडा, जाया' समिता थंडा भने लुता तेभां 'अभितरिया समिया, मज्झमिया चंडा बाहिरिया जाया' ने मल्यन्तर परिषदा છે તેનું નામ સમિતા છે. મધ્યમાં જે પરિષદા તેનુ' નામ ચંડી એ પ્રમાણેનું છે. અને બહારની જે પરિષદા છે. તેનું નામ જાતા એ પ્રમાણે છે. 'सकस्सणं भंते । देविंदस्स देवरण्णो अतिरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ' हे लगवन् देवेन्द्र देवरान राहुनी माल्यन्तर परिषहाभां डेटला
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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