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________________ १००२ जीवामिगमसूत्रे भगवानाह-नायमर्थः समर्थः । तत्केनार्थेन भदन्त ! गौतमस्य प्रश्नः ? एवमुच्यते भगवानाह-'गोयमा !चंदस्स जोइसिदस्य जोइसरन्नो चंदवडेंसए विमाणे सभाए मुहम्माए-माणवगंसि चेइयखमंसि वइरामएस गोलवट्टसमुग्गएमु बहुयाओ जिणसकहाओ संणिक्खित्ताओ चिट्ठति, जाओ णं चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरन्नो अन्ने सिं य वहणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ, तासिं पणिहाए नो पभू चंदे जोइसराया चंदवडिसए जाव चंदसि सीहासणं जाव भुंजमाणे विहरित्तए' हे गौतम ! चन्द्रस्य ज्योतिपेन्द्रस्य ज्योतिपराज्ञः चन्द्रावतंसके विमाने सभायां सुधर्मायां माणवके चैत्यस्तम्भे वज्रमयेषु गोलवृत्तसमुनकेपु बहूनि जिनसक्थीनि सनिक्षिप्तानि सन्ति तिष्ठन्ति इणढे समटे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ‘से केण? णं भंते ! एवं वुच्चई .नो पभू चंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धि दिव्याई भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए' हे भदन्त ! ऐला आप किस कारण से कहते हैं कि ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में चन्द्र सिंहासन पर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोगोपभोगों को भोगने के लिये समर्थ नहीं हैं ? 'गोयमा ! चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो चंदवडे सए विमाणे सभाए सुहम्माए माणवगंसि चेतियखंभसि वइरामएस गोलवसमुग्गए बहुथाओ जिणसकहाओ सण्णिखित्ताओ चिट्ठति' हे गौतम ! ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मासमा में माणवक चैत्यस्तम्भ में चन्नमय પુરના દિવ્ય એવા ભેગપગોને ભેગવવા માટે શું સમર્થ છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ है-'णो इणटे समढेर गौतम ! मी म समर्थ नथी. 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ नो पभू चंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए' हे भगवन् मा५ मे ॥ ४२थी ४हाछ। -योति ષરાજ ચંદ્ર ચંદ્રાવતંસક વિમાનમાં સુધર્મા સભામાં ચંદ્ર સિંહાસનની ઉપર પિતાના અંતઃપુરની સાથે દિવ્ય એવા ભેગપભેગોને ભેગવવા માટે સમર્થ नथी ? 'गोयमा ! चंदस्स ज्योतिसिंदस्स ज्योतिसरन्नो चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए माणवर्गसि चेतियखंभंसि वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिणसकहाओ सन्निखित्ताओ चिटुंति' गौतम ! ज्योतिषेन्द्र ज्योतिष यन्द्रना या વતંસક વિમાનમાં સુધસભામાં માણવક ચિત્યસ્તંભમાં વિજય ગોલવ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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