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________________ ९९० . . . . जीवाभिगमसूत्र गिका अनियोजिता एव स्वोचितं मत्वा एवं विलसन्ति । 'एवं परविमाणस्स वि पुच्छा' हे भदन्त ! सूर्यविमानस्यापि एवं पृच्छा-तद्विपयेऽपि ज्ञातु मिच्छा ? भगवानाह-'गोयमा ! सोलसदेव साहस्सीओ परिवहंति पुव्वक्कमेणं' हे गौतम ! पोडशदेवसाहस्त्र्यः पूर्वक्रमेण चन्द्रविमानवत् परिवहन्ति ‘एवं गहविमाणस्स वि पुच्छा' एवं ग्रहाणां विमानस्यापि पृच्छा ? भगवानाह-'गोयमा ! अट्ट देवसाहस्सीओ परिवहंति पुव्वक्कमेणं दो देवाणं साहस्सीओ पुरथिमिल्लं वाहं परिवहंति दो देवाणं साहस्सीओ दक्खिणिल्लं, दो देवाणं साहस्सीओ पच्चत्थिमिल्लं, हयरूप धारण करके उठाते हैं । 'एवं सूरविमाणस्स वि पुच्छा' हे भदन्त ! इसी तरह से सूर्यविमान के उठाने के विषय में पृच्छा हैअर्थात् सूर्य के विमान को कितने हजार देव उठाते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति पुन्चकमेणं' हे गौतम ! सूर्य के विमान को पूर्वदिशा आदि के क्रम से १६ हजार देव उठाते हैं इनके सम्बन्ध में सब कथन जैसा चन्द्रविमान उठाने के प्रकरण में लिखा गया है वैसा ही है "एवं गहविमाणस्स वि पुच्छा' हे भदन्त ! ग्रह के विमान को कितने हजार देव उठाते हैं ? तो इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! अह देवसाहस्सीओ परिवहंति पुव्वक्कमेणं' हे गौतम ! ग्रह के विमान को आठ हजार देव पूर्व दिशा आदि के क्रम से उठाते हैं 'दो देवाणं साहस्सीओ पुरथिमिल्लं वाहं परिवहति दो देव साहस्सीओ दक्खिणिल्लं' दो देवाणं साहस्सीओ a विमानन व 'छ. 'एवं सूरविमाणस्स वि पुच्छा लगवन् मार પ્રમાણે સૂર્યના વિમાનને ઉઠાવવાના સંબંધમાં પ્રશ્ન છે. અર્થાત્ સૂર્યના વિમાનને કેટલા હજાર દેવ ઉઠાવે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે -गोयमा ! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति पुवकमेणं गौतम ! सूर्यना વિમાનને પૂર્વ દિશા વિગેરે દિશાના કમથી ૧૬ સેળ હજાર દેવ ઉઠાવે છે. તેના સંબંધનું તમામ કથન જેમ ચંદ્ર વિમાન ઉપાડવાના સંબંધમાં કહેલા छ. मेरी प्रमाणे छे. 'एवं गहविमाणरस वि पुच्छा है भगवन् ! अहाना વિમાનને કેટલા હજાર દેવ ઉપાડે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુત્રી કહે છે કે 'गोयमा ! अट्ट देव साहस्सीओ परिवहति पुवकमेणं' है गौतम ! बहना विभानर मा २ हेपूर्व हिशयाना मथी व छ. 'दो देवाणं साहस्सीओ पुरथिमिल्लं वाई वारिवहति दो देवाणं साहस्सीओ दक्खिणिल्लं, दो देवाणं साहस्सीओ पच्चस्थिमिल्लं, दो देव साहस्सी हयवधारीणं उत्तरिल्लं वाहं परिवहति' .
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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