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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.११४ चन्द्रविमानवाहकदेवसंख्यादिनि० ९८७ कुक्षीणाम् । 'पीणपीवरवट्टितमुसंठितकडीणं-ओलंब पलंब लक्खणपमाण जुत्तपसत्थरमणिज्जवालगंडाणं तणुसुहुमसुजायणिद्धलोमच्छविधराणं मिउविसयपसत्थसुहुमलक्खणविकिण्णकेसरवालिधराणं ललियसविलासगइललंतथासगललाडवरभूसणाणं-मुहमंडगोचूलचमरथासगपरिमंडियकडीणं-तवणिज्जखुराणं तवणिज्जजीहाणं-तवणिज्जतालुयाणं-तवणिज्जलुजोइयाणं- कामगमाण-पीइगमाणं-मनोगमाणं मनोरमाणं-मणोहराणं-अमियगईणं-अमियबलचीरियपुरिसकारपरकमाणं' पीनपीवरवर्तितसुसंस्थितकटीनाम्-तत्र पीना-स्यूला पीवरा परिपुष्टा वर्तितागोलाकारेण परिणता सुसंस्थिता कटिर्येपाम्, अवलंबे प्रलंबस्थलक्षणप्रमाणेन युक्तप्रशस्तरमणीयाः वाला गण्डयो येषाम् तेपामवलम्बप्रलम्बलक्षणप्रमाणयुक्तप्रशस्तरमअच्छे रूप में नन हैं संगत हैं और सुजात हैं 'मितमायितपीणरझ्य पासाणं' इनके वे पार्श्वभाग मित हैं अपनी २ मात्रा के अनुरूप है और पुष्ट हैं 'झसविहगसुजातकुच्छीणं' इनकी जो कुक्षि-पेट है वह मछली और पक्षी के जैसा पतला अच्छा है 'पीणपीवरवहितसुसंठितकडीणं' इनका जो कटिभाग है वह पुष्ट है विस्तृत है स्थूल है गोल है और अच्छे आकार वाला है 'ओलंबपलंवलक्खणपमाणजुत्तपसत्थरमणिज्जवालगंडाणं' जिनके दोनों कपोलों के बाल ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह से लटकते हुए है लक्षण और प्रमाण से युक्त हैं प्रशस्त हैं रमणीय हैं 'तणुसुहुमसुजायणिद्धलोमच्छविधराण' तनु सूक्ष्म, स्निग्ध ऐसे वालों की छवि को घोडे धारण किए हुए हैं 'मिउविसयपसत्थसुहमलक्खणविकिण्णकेसरवालिधराणं' इनके गलों में अर्थात् गर्दन पर वाल है वह मृदु है विशद हैं, प्रशस्त है सूक्ष्म है सुलक्षणोभने सुन्तत छ. 'मियमाचितपीणरइयपासाणं' सेना 2 पाश्वमा भित छ. पोत पोताना भात्राने मनु३५ छ. अन युष्ट छ. 'झसविहगसुजातकुच्छीणं' तभनु २ पेट छे. ते भासी मन पक्षिनारे पात छे. 'पीणपीवर वट्टितसुसंठितकडीणं' तमनट मारा छे. ते पुष्ट छ. विस्तृत छ. स्थूल छ. गोण छ. मन सु२ मावाणी छे. 'ओलंबपलंबलक्खणपमाणजुत्तपसत्थ रमणिज्जबालगंडाणं' मना भन्न चाहाना वा उपरथी नीय सुधी सारी રીતે લટકતા રહેલ છે. લક્ષણ અને પ્રમાણથી યુક્ત છે. પ્રશસ્ત છે भने २भय छे. 'तणुसुहुमसुजायणिद्धलोमच्छविधराण' तनु-सूक्ष्म, स्न सेवा पाणाने से घाये धारण ४२८ छ. 'मिउविसयपसत्थसुहुमलक्खण विकिण्णकेसरवालिघराणं तमना गजामा अर्थात् गन ५२२ पण छ તે કેમળ છે, વિશદ છે. પ્રશસ્ત છે. સૂક્ષમ છે, સુલક્ષણોપેત છે. તથા સુલ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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