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________________ प्रतिका टीका प्र. ३. उ. ३ . १२४ विमानवाहको व्यादि नि० ९७९ मित्तललियपुलियचक्कवालचवलगव्वितगईणं' चङ्क्रमितललितपुलितचक्रवालचपलगर्वितगतीनाम् चंक्रमिता ललिता (कुटिला सविलासा) पुलिता - आकाशे उत्पतितुमिच्छेत्र - चक्रवालं चक्राकारभ्रमणं तद्वत् - चलचपला गर्विता गतिर्येपां तेषाम्, 'पीवरोरुवट्टियसुसंठितकडीणं - ओलंपलंय लक्खणपमाणजुत्तपसत्थरमणिज्जवालगंडाणं - समखुरवालधारीणं- समलिहियतिक्खग्गसिंगाणं- तणुसुमसुजातगिद्धलोमच्छविधराणं- उपचितमंसलविसालपडिपुण्णसंग एसतुंदराणं-वेरुलियकुछ २ वे नीचे की ओर झुके हुए भी है 'चंकमितललितपुलियचक्कवालचवलगव्वितगतीणं' इनकी जो गति - चाल है वह चंक्रमित है, ललित है कुटिल है विलास युक्त है, पुलित आकाश में ये मानों उड जाना चाहते है ऐसी है और गर्व से भरी हुई सी जिस प्रकार की गति भमूडे की होती है ऐसी ही इनकी गति चपलता आदि विशेषणों से भरी है 'पीवख्वहियसुसंठितकडीणं' इनका कटिभाग पीवर है पुष्ट है और जंघा के जैसा गोलाकार संस्थान वाला है 'ओलंबपलंबलक्खणपमाणजुत्तप सत्थर मणिज्जवालगंडाण' इनके कपोलों पर जो बाल हैं रोमराजि हैं वे एकसी कतार में स्थिर हैं -छोटे वडे नहीं है अपने प्रमाण में एक से लम्बे हैं अतः वडे अच्छे लगते हैं 'समखुरबालधारीणं' इनके खुर एक से हैं छोटे वडे नहीं हैं तथा पूछ भी शरीर के आकार के प्रमाणानुसार जितनी लम्बी आदि होनी चाहिये उतनी है छोटी या बडी नहीं है 'समलिहिततिक्खग्गसिंगाणं' इनके અને પ્રમાણમાં ઉન્નત છે તેમજ સાથે સાથે કંઇક કંઇક તે નીચેની તરફ नभेला छे. 'चंकमितललितपुलियचक्कवालच वलगव्वितगतीणं' तेखानी ? गति छेग्यास छे, ते यडेभित छे, ससित छे, टिस छे, विलास युक्त छे चुसित અર્થાત્ જાણે તેઓ આકાશમાં ઉડવા ઇચ્છે છે, એવી છે. અને ગર્વથી ભરેલી જેવી છે. જે પ્રમાણે ભમરાની ગતિ હાય છે એવી તેમની ગતિ ચપલતા વિગેરે विशेषण वाणी होय छे. 'पीवरोरुवट्टियसुसंठितकडीण' तेभना उभ्भरनो लाग પીવર છે, પુષ્ટ છે. અને જાંઘના જેવા ગેળ આકાર હાય છે તેવા આકાર વાળા डाय छे. 'ओलंबपल्बलक्खणपमाण जुत्तपसत्थ रमणिज्जवालगंडाण' तेभना उयोस ભાગા પર જે વાળ છે, રામરાજી, છે. તે એક સરખી કતાર બદ્ધ છે. નાની મોટી નથી. પેાતાના પ્રમાણમાં એક સરખા છે તેથી તે ઘણાજ સુંદર લાગે છે. 'समखुरवालधारीण' तेभनी भरियो मे सरणी छे. नानी भोटी नथी. तथा તેમના પૂછ પણ શરીરના આકારના પ્રમાણ અનુસાર જેટલી લખાઇ વિગેરે डोवी लेहो भेटसी छे, नानी डे भोटी नथी. 'समलिहिततिक्खग्गसिंगाणं'
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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