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________________ - मीषाभिगमसूत्र ८44 कुशलनरनारीसुसंपरिगृहीताया, कुशलेन-वीणावादननिपुणेन नरेण-पुरुषेण. नार्या-स्त्रिया वा सु-सुष्टु सम्यक् परिगृहीतायाः 'पदोसपञ्चमकालसमयसि' पदोपप्रत्युपकालसरये, प्रदोषे-सायङ्काले प्रत्यूपे-प्रभातवेलायाम्, 'मंद मंद पडयाए' मन्दं मन्द-शनैः शन: एजितायाः चन्दनसारकोणेन ईपत कम्पितायाः 'वेश्याए' ज्येजितायाः-विशेषतः कम्पनयुक्तायाः कम्पिलाया:-वारं नगरं यम्पन. युक्तायाः एतावदेव पर्यायेण व्याचष्टे-'खोभियाए चाकियाए फदियाए घटिपाए उदीरियाए' क्षोभितायाः चालितायाः स्पन्दितायः घट्टिताया उदीरिताया पत्र क्षोभिताया:- सूर्थी प्राप्तायाः, चालिगाया:-प्रेरितायाः, स्पन्दिताया:नखाग्रेण स्वरविशेषोत्पादनाथमीपच्चालितायाः घटिताया:. अधिोगच्छता के ढंग से रगड रगड कर चलाता है बजाने वाले पुरुषको या स्त्री को पजाने की क्रिया में विशेष निपुण होना चाहिये ऐसा चैमा व्यक्ति वीणा को ढंग से नहीं बजा सकता है और न वह उसे अपने अवगोद में सुव्यवस्थितरूप से रख ही सकता है इन्ही सब बातों को समझाने के लिये 'अंके सुपट्टियाए चंदणसारकोण पविघट्टियाए कुसलनर नारि सुसंपगाझ्यिाए पदोसपच्चरकालसमयमि मंदं २ एइयाए वेड्याए खोभियाए चालियाए फंदियाए घट्टियाए उदीरियाए ओराला मणुण्णा कण्णमणणिवुटकरा सन्यो ससंता सद्दी अभिणिस्मनि' ऐसा पाठ यहां लिखा गया है चीणाका वादन या तो प्रातः काल होता है या सायंकाल के समय में होता है जब वह वीणा चन्दन सार निर्मित दण्डकोण से धीरे धीरे वजायी जाती है या विशेषरूप से जोर २ से पजायी जाती है तब उससे जैसा फर्ण और मनमोहित करने वाला વાદન દંડથી વગાડે છે, તાર પર તેને બનાવવા માટે ઢંગથી ઘસી ઘસીને ચલાવે છે. વગાડનાર પુરૂષ અથવા સ્ત્રી વગાડવાની ક્રિયામાં વિશેષ પ્રવીણ હોવી જોઈએ જેવી તેવી વ્યકિત વણને દંગપૂર્વક વગાડી શકતી નથી તેમ તે વહુને પિતાના ખેાળામાં સુવ્યવસ્થિત રીતે રાખી પણ શકતા નથી. આ બાબત समता भाटे के सुपइट्ठियाए चंदणसारकोणपरिघट्टियाए कुसलनरनारि सुसंप गहियाए पदोसपच्चूसकालसमय सि मदं २ २इयाए वेइयाए बोभिगए चलियाए फंदियाए घट्टियाए उदीरियाए ओराला मणुण्णा कण्णमणणिव्वुतिकरा सव्व ओ समता सदा अभिणिस्सति' मा प्रमाणेना या ४३वामां मात छ. વીણનું વાદન કાંતે પ્રાતઃકાળ સવારના સમયમાં અથવાતે સાયંકાળ સાંજના સમયમાં થાય છે તે વીણાને જ્યારે ચંદનસારથી બનાવેલા દંડના ખૂણાથી ધીરે ધીરે વગાડવામાં આવે અથવા વિશેષ પ્રકારથી જોર જોરથી વગાડવામાં
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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