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________________ जीताभिगमत ८१० ग्रन्थपद्धतिरूपो वर्णावास:-वर्णकनिवेश इत्यर्थः, प्रज्ञप्त:-कथित इति । 'तं जहा' तद्यथा-'वारामया नेमा' बज्रमथा नेमा नेमा नाम पदमबरवेदिकाया भूमिभागा वं निष्क्रामन्तः प्रदेशाः ते सर्वेऽपि बनमया:-बजरत्नभवाः 'रिट्टामया पहहाणा' रिष्टमयानि प्रतिष्ठानानि रिष्टो रत्नविशेपस्तद्रूपाणि मतिष्ठानानि मृल. पादाः 'वेरुलियमया खंभा वयरत्नमयाः स्तम्माः, 'यणरूपमया फलगा' मुवर्णरूप्यमयानि फलकानि 'लोहितक्खमई यो मृईओ' लोहिताक्षरन्नमयः सूचया फलकद्वयसम्बन्धविघटनामावहेतु पादुकास्थानीयाः। 'वडरामया मंधी' वन्नमयाः सन्धयः सन्धिमेलाः फलकानाम् अयपर्थ:-वन्त्ररत्नपूरिताः फलकानां सन्धय इति । 'णाणामणिमया कलेवरा' नानामणिमायनि-अनेकविधरत्नघटितानि फलेवराणि-मनुष्यादि शरीगणि 'णाणामणिमया कलेवरसघाडा' नानामणिमया: वर्णावाल-वर्णन इस प्रकार से कहा गया है त जहा' जैसे-'वरामया नेमा' इस पद्मवरवेदिका के जो नेम है-भूमिमान से ऊपर की ओर निकलते हए जो प्रदेश है। वेलवस्त्रमय है अर्थात पदमबरवेदिका के अधोभाग में जो प्रदेशचे मय वजाल के पले हए है 'रिद्वामया पइट्टाणा' रिष्टरत्न के इसके प्रतिष्ठान है-मृलपाद है 'वेलियमयाखभा' वरत्न के हमके स्तम्भ है 'सुवण्णहप्पमया फलगा' सुवर्ण और रुप्य, चांदी की मिलावट से बने हुए इसके फलक है । पाटिये है 'लोहिलखमहको सईओ' लोशितोक्ष रत्न की बनी हुई इसकी सचियां है । ये सूचीयां पादुका के स्थानापन्न होती है जो दोनों पार्टियों को आपस में संबंधित किए हुए रखती है उन्हें विघटित नहीं होने देती है। 'बहरामया संधी' इसके फलों की जो संधिया है वे वज्ररत्न से भरी हुई है । 'ण.णामणिमया कलेवरा यहां जो मनुष्यादि शरीर के चित्र बने हुए है। वे अनेक प्रकार के यणियों के बने हुए है। 'णागा. ભૂમિભાગથી ઉપરની તરફ નીકળતા જે પ્રદેશ છે, તે બધા જ રત્નના બનેલા डाय थे, 'रिदमया पहटाणा' (२०ट २८नना तना प्रतिष्ठान छे. भूसपाई छ. 'वेल लियामया खंमा' वय २नना तना स्तम्ला छे. 'सुवण्णरुप्पपया फलगा' सुपर भने शाहीनी भणी यी मनेसा नासी छे, पाटिया 2. लोहितक्खमइयो મૃગોલેહિતાક્ષ રતનની બનેલી તેની સૂચિયા છે. એ સૂચિ પરસ્પર સંબંधित २९ छ. तेने 1 ५४१८ ती नथी. 'वइरामग संधी' तेना ३०ीनी २ सधिये। छे, ते १०० २त्नथा मरेकी छे. 'णाणा मणिमया कलेवरो' मडीया रे મનુષ્યાદિના ચિત્રો બનાવવામાં આવેલ છે, તે અનેક પ્રકારના મણિના બનાबवामा भात छे. 'णाणा मणिमया कलेवरसंघाहा' तथा मनुष्यना स्त्री पु३वाना
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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