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________________ प्रमैयद्योति का.टीका प्र.३ उ.३ जू.४९ वानव्यन्तरदेवानां भवनादिकम् ७७९ धानायां पर्षदि 'अट्ठ देवसाहसीओ पन्नत्ताओ' अष्ट देवसहस्राणि, पज्ञप्तानि, तथा-'मज्झिमपरिसाए दसदेवसाइस्सीभो पन्नत्ताओ' माध्यमिकायां पर्पदि दशसंख्यानि देवसहस्राणि प्रज्ञप्तानि, तथा-'वाहिरियाए परिसाए वारसदेवसाहस्सीयो पनत्ताओ' बाह्यपदि द्वादशदेवसहस्राणि प्रज्ञतानि एवम्-‘अतिरियाए परिसाए एगं देविसयं पन्नत्तं' अभ्यन्तरिकायां पर्षदि एक देवीशतं प्रसप्तम्, तथा-'मज्झिमियाए परिसाए एगं देविसयं पन्नत्त' माध्यमिकाया पपंदि एकं देवीशतं यज्ञप्तम्, 'वाहिरियाए परिसाए एगं देविसयं पन्नत्तं' बाह्यायां पर्ष दि एकं देवीशतं पज्ञप्तम् इति ।। ____अथ पर्षद्गतदेवदेवीनां स्थितिविषये प्रश्नयनाद-'कालस्स णं' इत्यादि, 'कालस्स णं भंते !' कालस्य खलु भदन्त ! 'पिप्लायकुमारिदस्त पिसायकुमाररायस्स' पिशाचकुमारेन्द्रस्य पिशाचकुमारराजस्य, 'अमितरियाए परिसाए' आभ्यराजकाल इन्द्र की ओभ्यन्तर परिषदा में आठ हजार देव कहे गये है । 'मज्झिमियाए दस देव साहरूप्तीभो पन्नत्ताभो' मध्यमिका सभो में दसहजार देव कहे गये है। 'ध्याहिरियाए परिवाए बारलदेव लाहस्सीओ पन्न त्ताभो' वायपरिषदा में १२ हजार देव कहे गये है। तथा-'अभितरियाए परिसाए एगं देविनयं पण्णत्तं 'आभ्यन्तर परिषदा में एकसौ देवियां कही गई है 'मज्झभियाए परिसाए एणं देविष्यं पण्णत्तं' मध्य मिका सभा में भी एक लौ देवियां कही गई है। 'वासिरियाए परिसाए एग देविसयं पन्नत तथा वाहूयपरिषदा में भी एकसौ देवियां कही गई है। अब उन सब की स्थिति का कथन करते है। हालस्स ' इत्यादि, 'कालस्स णं भंते ! पिसायकुमारिदस्त पिसायकुमारावस्ल अभितरिस्सीओ पन्नत्ताओ' है गीतम! पिशायभारेन्द्र पिशायभा२२००४ सनी मास्यन्त२ परिषदाम मा १२ ८००० । ४ा छे. 'मज्झिमियाए दम देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ' मध्यमि। सभामा १०००० स १२ हे ह्या छ. 'बाहिरियाप परिसाए बारसदेव साहसीओ पण्णत्ताओ' है गौतम! माह परिषहामा १२००० मा२ १२ । ह्या छे. 'अभितरियाए परिसाए एगं देविसय पण्णत्त' तथा म.क्य-त२ परिषदामा मे से क्यिो डी छे. मज्झि. मियाए परिसाए एगं देविसय पण्णत्त' मध्यभि स.५ : सा १०० विय! ही छे. 'बाहिरियाए परिसाए एग देविसय पन्नत्त' मा परिक्षामा પણ એક સો દેવિ કહી છે. - હવે આ ઉપરોક્ત સઘળા દેવ દેવિયની સ્થિતિનું કથન કરવામાં આવે છે. 'कालस ण" इत्यादि 'कालरस णं भंते ! पिसायकुमारि दस्म पिसायकुमाररायस्स अभितरियाए
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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