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________________ जीयाभिगम ৬ तभी परिलाओ पन्नताओ' चमरस्यामृरकुमारेन्द्रस्य कुमारराजस्य तिस्रः पर्षद ज्ञप्ता - 'तं जहा' तद्यथा-'समिया चंडा जाया' समिता चण्डा जाता 'अतिरिया समिया' आभ्यन्तरिका समिता 'मज्झिमिया चंग' माध्यमिका चण्डा 'बाहिरिया जाया' वाया जाता, इत्येवमन्तर प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ! इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम ! 'चमरस्स णं अरिंदम अगुररन्नो' चमरस्य खलु असुरकुमारेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य 'अविर परिसा देवा' आभ्यन्तर पर्यत्का:प्रथमपत्संबन्धिनो देवाः 'वाहिया हव्वमागच्छेति नो अन्नाहिया' व्याहता आहूताः सन्तः 'हवं' शीघ्रं यथास्यात् तथा आगच्छन्ति नो अन्यहता आगच्छन्ति, 'मज्झिम परिसाए' माध्यमिकायां द्वितीयस्यां चण्डायां पर्पदि स्थिता देवाः 'वाडिया हव्त्र मागच्छेति अन्वाहिया वि' व्याहता आहताः शीघ्रमागच्छन्ति अव्याद्या अपि शीघ्रमागच्छन्ति मध्यममतिपत्तिविषयत्वात् 'बाहिर दस् त परिनाओ पण्णत्ताओ' असुरेन्द्र चमर की तीन परिषदाएं है 'समिया चंडा जागा' पहिली समिता दूसरी चंडा और तीसरी जाया इनमें जो आभ्यन्तर सभा है उसका नाम समिता है मध्यमा जो परिषदा है उसका नाम चंडा है और 'बाहिरिया जाया' वाघ जो परिषदा है उसका नाम जाया है । इसके उत्तर में गौतम से प्रभुश्री कहते है 'गोवा | चमरस्सणं असुरिंदस्त असुग्रनो अभितर परिक्षा देवा चाहिता हन्वप्राधन्छंति, जो अवाहिता' हे गौतम! असुरेन्द्र असुरराज की जो आभ्यन्तर परिपक्ष है, उस परिषदा के देव जब बुलाये जाते है तब ही आते है । वे बिना बुलाये नही आते है ! 'मज्झिमपरिसाए देवा वाहिता हन्त्रमा गच्छेति' अन्वाहिला दि' मध्यम परिषदा के जो देव है वे बुलाये जाने पर भी आते है और नही बुलाये जाने पर भी आते है 'बाहिर परिसा रिंदस् त परिसाओ पण्णत्ताओ' सुरेन्द्र भरनी वा परिषहा है. 'समिया चंडा जाया' पहेली समिता मील थंडा नेत्री लया. तेमां ने माभ्यन्तर परिषहा है. तेनु नाम समिता हे ध्यभा के परिषता छे तेनु लाभ थंडा हे भने 'बाहिरिया जाया' मा ने परिषा हे तेनुं नाभ लया है ? या प्रश्नना उत्तरमां श्रीगीतभस्वामीने प्रभुश्री हे हे ! 'गोयमा ! चरणं असुरिदस्स असुररण्णा अभितर परिक्षा देवा वाहिता इन्त्रमागच्छति जो अव्वाहिता' हे गौमत | सुरेन्द्र असुरराज्नी ने माम्यन्तर परिषदा है, તે પરિષદાના દેશ જો ખેલાવવામાં આવે તેજ આવે છે. તેએ એલાવ્યા नगर भावता नथी. 'मज्झिमपरिसार देवा वाहिता इव्त्रमागच्छति, अव्वाहिता વિ' મધ્યમ પરિષદાના જે દેશ છે તેઓને મેલાવવામાં આવે તે પણ આવે हे भने विना सोसाव्या यावे हे 'बाहिरपरिसा देवा अव्वाहिता छन्ष
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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