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________________ ७.२ जीवामिगमले योजनशतानि आयाविष्कम्भेण द्वीपा भवन्ति, 'बावीसं तेरसोत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं' त्रयोदशोत्तर द्वाविंशतियोजनशतानि परिक्षेषेण द्वीपा भवन्ति । 'छट्ट चउक्के अट्ठजो यणसयाइ आयामविवखंभेग' पाठ चतुष्केऽष्टयोजनशतानि आयामविष्कम्भेण द्वोश भवन्ति, तथा-'पणवीसंगूणतीसजोयणसए परिक्खेवेणं' एकोनत्रिंशदधिक पश्चविंशतियोजनशतानि परिक्षेपण । 'सत्तरचउक्के नवजोयणसयाई आयामरिक्खभेगं' सप्तमवतुके नवयोजनसतानि आयामविष्कम्भेण, तथा-'दो जोरणसहस्साई अट्ठपणवाले जोयणसए परिक्खेवेणं' द्वे योजनसहसे पञ्चचत्वारिंशदधिकानि अष्टयोजनशतानि (२८४५) परिक्षेपेण द्वीपा भवन्ति । अथ सर्वेषां चतुष्काणामगाहनाविष्कम्भ पदिधिपरिमाणज्ञानार्थ गाथामाह'जस्स य जो' इत्यादि, 'जस्स य जो दिक्खंभो' यस्य चतुष्कस्य यो यावत्परिमितो कुछ अधिक है 'पंचम्मच धक्के सत्तजोयणसथाई आयामविक्खंभेणे घाचीसं तेरसोत्तरे जोयणलए परिक्खेवेणं पंचम चतुष्क में अर्श्वकर्ण आदि द्वीपों की लम्बाई चौडाह सात सौ योजन की है । और परिक्षेप कुछ अधिक बाइस सौ तेरह-२२१३ योजन का है 'छह चउक्के अट्ट जोयणसयाई आयामविकावंभेणं पणवीसंगुणतीस जोधणसए परिक्खेवेणं' छठे चतुष्क में उल्कामुख आदि द्वीपों की लम्बाइ चौड़ाई आठ सौ योजन की है और परिक्षेप कुछ अधिक पचीस सौ गुनतीस २५२९ योजन का है 'सत्तमचउके नव जोयणसचाई आयाम विक्ख भेणं दो जोयणसहस्साई अट्ठ पणयाले जोयणलए परिक्खेवेणं' छठे चतुष्क में लम्बाई चौडाई नौ सौ योजन की है और परिक्षेप कुछ अधिक दो हजार आठ सौ पैंतालीस-२८४५ योजन का है। यहां इस विषय में गाथा 'जस्म जो विक्खं गे ओगाहो तल तत्तिओ चेव' विखंभेग बावीसं तेरसोत्तरे जोयणसए परिवखेवण' पांयमा यतुभ मश्व કર્ણ વિગેરે દ્વીપની લ બાઈ પહોળાઈ સાતસો જનની છે. અને પરિક્ષેપ Us qधारे २२१३ मावीससे ते२ योनिने छे. 'छ? चउक्के अट्ट जोयणसयाइ आयाम वे खम्भेगं पगवीस गुणतीमजोयणसर परिक्खेवेणे' ७४! यतु मां ઉલકામુખ વિગેરે દ્વીપની લંબાઈ પહોળાઈ આઠ જનની છે. અને પરિ. ३५ ४४ पधारे ५२योससे सगात्रीस २५२८ योगननाछे. 'सत्तम चउक्के नवनोयण सयाई ओयामविक्खंभेणं दो जोयणसहस्साई अटू पणशले जोयणसए परिक्खेवेग' सतमा यतुम मा पहा नपसे। याननी छ भने પરિક્ષેપ કંઈક વધારે ૨૮૪૫ બે હજાર આઠસો પિસ્તાળીસ જનને છે. मा समयमा म प्रमाणनी गाथा ४९ छे. 'जस्स जो बिक्खंभो ओगाहो
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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