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________________ जीवामिगमसूत्र प्रेक्षा-प्रेक्षणम् 'लास गपेच्छाइ वा लासकमेक्षेति वा, लासकाः ये रासकान ऐति हासिक गीतरूपान् गायन्ति ते जयशब्दप्रयोक्तारो वा लासकारतेषां प्रेक्षा 'लंख. पेच्छाइ वा लंखप्रेक्षेति वा, लङ्खा महावंशाग्र पारुह्य नृत्यकारः 'मंखपेच्छाइ वा' मसा प्रेक्षेति वा, मङ्खा ये चित्रपट्टादिहस्लामिक्षां चरन्ति, 'तूणहल्लपेच्छाइ वा तूग. इल्पेक्षेति वा-तूणानामक वाद्यवादकास्तेषां प्रेक्षा, प्रेक्षणकमित्यर्थः. 'तुंबवीण पेच्छाइ वा तुम्बीणापेक्षेति वा, तुम्नवीणा अलावुफलनिर्मिता विशेषरचनयानिमिना वीणा 'कावपेच्छाइ या' कावप्रेक्षेति बा, कावा:-कावडिकावाहकास्तेषां प्रेता। 'पागडपेच्छाइ वा' यधपेक्षेनि वा मागधारतुति पाठकास्तेषां प्रेक्षा वा एतानि मेला अरता है क्या ? 'लालग पेच्छाइ बा' लास जनों के-ऐतिहा सिक रातों-गीतों को गाने वालों अथवा जर जय शब्द बोलने वालों के लास्थ को-देखने वालों का मेला भरता है क्या? 'लंख पेच्छाइदा मंख पेच्छाइ बा, तू गहल्ल पेच्छाइ वा लख-कांस पर चढकर खेलने वालों के खेल को देखने वालो का मेला भरता है क्या ? मंख-चित्र पहल हाथ में लेकर हर एक घर से भिक्षा मांगने वालों को देखने बालों का मेला भरता है क्या! तुणा नामक बाविशेष को बजाने वालों के उस वाद्य पजाने की हाला को देखने वालों का मेला भरता है क्या? 'तूंबदीण पेच्छाइ वा तंबडी की वीणा बजाने वालों की वादन क्रिया को देखने वालों का मेला भरता है क्या ? 'काव पेच्छाइ वा कंधे पर कावड लिये फिरने वालों की विचित्र प्रसार भी लीलाक्रीडा-को देखने वालों का सेला है क्या ? 'सागह पेच्छाइ दा' स्तुति વિછારૂવા” શુભ અને અશુભનું આખ્યાન કરવાવાળાઓની જે સભા ભરાય छ. तन मे १२.५ छ ? 'लोग पेच्छाइवा' सास गनानी अर्थात् ઐતિહાસિક રાસ ગરબા ગાવાવાળા અથવા જય જય શબ્દ બોલવાવાળાઓના सायने नारासोन। भणी मराय छ १ 'लखपेच्छ इवा मंस्वपेच्छाइवा, तणडल्लपेच्छाइवा' -पास ५२ यढीन. २मत ४२वावाणायानी २भतन જેનાર મનુષ્યનો મેળો ભરાય છે ? મ ખ-ચિત્રપટ હાથમાં લઈને દરેક ઘરમાં ભિક્ષા માગનારાઓને જેનારાએ ને મેળા ભરાય છે? તૂણ નામના વાદ્ય વિશેષને વગાડવાવાળાઓના તે વાદ્ય વગાડવાની કળાને દેખનારાઓને મેળો माय छ ? 'तू चवीण पेच्छा इवा' तुपडीनी वीए। पापावाणासानी पाहन ठियान लेना।माना भी सराय छे ? 'काबपेच्छाइवा' मा ५२ अपर લઈને ફરવાવાળાઓની વિચિત્ર પ્રકારની લીલા કીડાને જોનારાઓનો મેળે मराय छ ? 'मागहपेच्छा इवा' स्तुति ५४ ४२वावा भाग नाना स्तुति
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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