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________________ shruोतिका टीका प्र.३ उ०३ सु. ३८ एकोरुक० मनुजीवानामाकारादिकम् ६१५ रार्थ:- आहार प्रयोजनं 'समुप्पज्जइ' समुत्पद्यते कियतिकाले गते सते पुनरा हारविषयिणी इच्छा प्रादुर्भवतीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि 'गोयमा हे गौतम! 'चउत्थमंत्तस्स आहारडे समुप्पज्जर' चतुर्थभक्ते तृतीयदिवसे आहाराः समुत्पद्यते, यद्यपि सरसाहारित्वेनैतावत्कालं तासां क्षुद्वेदनोदयाभावादेवा हाथ पैर नेत्र आदि सब ही बहुत सुन्दर होते हैं 'बण्णलावण्ण जोन्वण विलासकलिया' ये गौरादि वर्ण से, लावण्य से, यौवन से और विलास से सर्वदा युक्त ही बनी रहती है क्योंकि वहां क्षेत्र स्वभाव से वृद्धावस्था नही आती है 'णंदण वणविवरचारिणी उच्च अच्छराओ' ये ऐसी प्रतीत होती है कि मानों नन्दन वन में भ्रमण करने वाली अप्सराएं हैं इसलिये ये 'अच्छेरग पेच्छणिजा' ये आश्चर्य से प्रेक्षणीयदेखने योग्य होती हैं. अर्थात् जो इन्हें देखता है उसे यही विस्मय होता है कि ये मनुष्य स्त्रियां है या अप्सराएं हैं । 'पासाईयाओ दरिस णिजाओ, अभिरूवाओ, पडिरुवाओं' ये प्रासादिक होती हैं दर्शनीय होती हैं अभिरूप होती हैं और प्रतिरूप होती है इन पदों का अर्थ पीछे यथास्थान लिखा जा चुका है। 'तासिणं भंते! मणुईणं केवइ कालस्स आहारडे समुप्पज्जह' हे भदन्त ! इन मनुष्य स्त्रियों की आहारेच्छा कितने काल के बाद होती है अर्थात् एकबार आहार कर लेने के बाद पुनः आहार करने की इच्छा पती नथी. 'णदणवणविवरचारिणी उव अच्छराओ' तेथे। मेथी प्रतीत आहारट्टे समुप्पज्जइ' हे गौतम! तेथे सरस आहार उरे हे, तेथी खाने થાય છે કે જાણે નદન વનમાં ફરવાવાળી અપ્સરાએ જ હાય, તેથી તેએ 'अच्छे रंग पेच्छणिज्जा' माश्चर्यथी प्रेक्षणीय लेवासाय होय छे, अर्थात् तेथे ને જે દેખે છે, તેમને એજ આશ્ચય થાય છે કે તેએ મનુષ્ય શ્રિયે છે ? अप्सराओ छे ? 'पासाइयाओं, दरिसणिज्जाओ - अभिरुवाओं, पडिवाओं' તેએ પ્રાસાદીય હાય છે. દર્શીનીય હાય છે. અભિરૂપ હાય છે. પ્રતિરૂપ હોય છે. આ પઢાને અ પહેલાં આપવામાં આવી ગયેલ છે. 'तासि णं भवे ! मणुईणं केत्रइकालस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ' हे भगवन् આ મનુષ્ય સ્રિાને આહારની ઇચ્છા કેટલા કાળ પછી થાય છે? અર્થાત્ એકવાર આહાર કરી લીધા પછી ફરીથી આહાર કરવાની ઇચ્છા તેને કયારે
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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