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________________ ६०६ जीवामिगमत्र 'दाडिमपुप्फप्पगासपीवरकुचियर राधरा' दाडिमपुष्पप्रकाशपीवरकुश्चितराधरा, तत्र दाडिमपुप्पवद् प्रकाशः रक्त इत्यर्थः, पीव-उपचितः, कुश्चित:-आकुश्चितो मनाग पलितो नरः प्रधानोऽधरः-अधरौप्ठो यासां तास्तथा, 'सुंदरोत्तरोहाः सुन्दरोत्तरीष्ठाः 'दधिदगरयचंद-कुंदवासंति मउल अच्छिद्द विमलदसणा' दधिदकरजश्चन्द्रकुन्द-वासन्तीमुकुलाच्छिद्र विमलदशनाः, तत्र दधि लोक प्रसिद्ध दकरजो-जलकणः, चन्द्रा शशी कुन्द-कुन्दकुसमम् वासन्तीमुकुलंवासन्तीकलिका तद्वत् शुक्लाः अच्छिद्राः-विवररहिताः विमला:-मलरहिताः दशनाः दन्ता यास तास्तथा, 'रत्तुप्पलपत्तमउय सुकुमालतालुजीहा' रक्तोत्पण पत्र मृदुल सुकुमारतालुजिहाः, तत्र रक्तोत्पलपत्रवत मृदु के सुकुमारे ताजिये सूर्य, चन्द्र, शंख, चक्र एवं स्वस्तिक की रेखा होती है ये रेखायें प्रशस्त प्रशलास्पद होती है 'पीणुण्णयणकक्खपत्धिदेसा' कुछ कुछ ऊंचा इठा हा ऐसा यक्ष प्रदेश एवं नाभी के नीचे का भाग जिनका रम. णीय है ऐसी डिपुण्ण गल्ला वोला' परिपूर्ण एवं पुष्ट जिनक कपोल (गाल) प्रदेश है ऐसी एवं 'चउरंगुल सुपमाण कंधुवर सरीसगीवा' इनकी ग्रीन पूर्ण मांसल-पुष्ट चार आंगुल प्रमाण शंख के जैसी तीन रेखा युक्त होती है 'मंसल संध्य पसत्य हणुपा' टोडो-होठ के नीचे का भाग मांसल-पुष्ट होता है सुन्दर आकार वाली होता है. और प्रशस्त होता है. 'दाडिमपुप्फप्पगास पीवर कुंचियपराधरा' इनके अधरोष्ठ दाडिम-अनार के-पुष्प जैसे प्रकाशवाले सुहावने होते हैं अर्थात् लाल और चमकदार होते हैं, पीवर-पुष्ट होते हैं एवं आकश्चित कुछ२, वलित होते हैं अत एव वे देखने में बड़े अच्छे અને તે હથેલીની અદર સૂર્ય ચદ્ર, શંખ, ચક, અને સ્વસ્તિકની રેખાઓ डाय छे. ते २॥सा प्रशसार५४ होय छे. 'पोषुण्णयणकक्खवत्थिदेसा' તેઓના કાખને ભાગ કંઈક ઉચે ઉપડેલ હેય છે. તેમજ ડુંટીની નીચે मा सेसने सु२ हाय छ 'पडिपुण्ण गल्लकवोला' भनी ४पास प्रदेश अर्थात् गासन मा परिपूर्ण मने युष्ट हाय छे. 'चउरगुल सुप्पमाण कवु घरसरिसगीवा' तमना गाना मा मांसस पुष्ट य.२ मजिसमा तथा प्रधान शना मा२ २३ र २४ा युक्त डाय छे. 'मसल संठिय परत्य ggવા તેમની દાઢી (હેઠની નીચેનો ભાગ) માંસલ અને પુષ્ટ તેમજ સુંદર मारने डाय छ भने प्रशसार५४ डाय छे. 'दाडीमपुप्फ पगाच पीवर कुंचिथवरा પ’ તેઓના અધરેષ્ઠ દાડમના પુપની જેવા પ્રકાશવાળા અને સેહામણા હોય છે. અર્થાત્ લાલ અને ચમકદાર હોય છે. પીવર કહેતાં પુષ્ટ હોય છે,
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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