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________________ जीवाभिगमन स्पादयन्ति 'विधूयग्गसाहा' विधूताप्रशाखाः 'जेण वायविधूयमसाला' येन वातविधूतानशाखाः येन वातविधूतानशाखाः तेन वातविधूतनेन 'एगोख्य दीवस्स बहुसमरमणिज्नं भूमिभाग' एकोहक द्वीपल्य बहुसमरमणीय भूमिभाग 'मुक्कपुष्फ पुंजोवयार कालयं करेंति' मुक्तपुष्प पुञ्जोएचारकलितं कुर्वन्ति वातविधताः -वायुकम्पिताः या अग्रशाखास्ताभिर्मुक्तो यः पुष्पपुञ्जः-कुसुम समुदायः स एवोपचार:-प्रकारः तेन कलितं युक्तं कुवन्ति, इति । 'गोरुयदीवेणं तत्थ तत्य बहूमो वणराईओ' पण्णत्ताओ' एकोरूकद्वीपे खल्ल द्वीपे तत्र तत्र देशे बहन्यो। ऽनेक प्रकारका वनराजयः प्रज्ञप्ता:-कथिताः। 'तागो णं वणराईओ किण्हायो किण्होभासा जाब रम्मा भो' वाः खल बनराजयः कृष्णा कृष्णावभासाः यावत् -नीला नीलावभासावरम्याः 'महामेहणिकुरबभृयाभो' महामेघनिकुरम्बभूता::गुम्मा दसद्ध षण्ण कुसुमं कुसुमंति' ये गुल्म पांचों वर्णों वाले कुसुमों को उत्पन्न करते हैं। 'विधूपरगलाहा-जेण वाय विधूयग्णसाला' इनकी शाखाएं अप्रभाग में पवन के झोकों मह सदा हिलती रहती हैं। अतः ये 'एगोरुव दीवस्स बहु समरमणिज भूमिभागं मुक्कपुफपुंजोदयारकलियं करेंति' एकोरुक द्वीप के बहु समरमणीय भूमि भाग को मानों पुष्प पुंजों से ही ढक रहे हैं-ऐसा प्रतीत होता है तात्पर्य ऐला है कि गुल्मों की अनशाखाएं जब वायु के झकोतों से प्रकम्पित होती हैं तो उनसे अनेक पुष्प जमीन पर नीचे गिरते हैं-अतः ऐसा प्रतीत होता है कि मानो ये उस एकोरुक द्वीप के बहु समरमणीय भूमि भाग पर पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं । 'एगोरुघदीवेण तत्थ २, बहनो वणराईओ पण्ण. साओ' एकोहक द्वीप में अनेक स्थानों पर अनेक प्रकार की वनराजियां भी हैं 'ताओ णं वणराईओ किण्हाओ शिहोमासाओ जाव रम्माओ भी शुमा पांय वा पुयान अपन्न ४२ छ. 'विधूवगसाहा जेण वाय विधूवग्गसाला' तना पाया जायेपवनना ओ४थी सही सती २७ छे. तेथी त 'एगोरुय दीवस्त्र बहुसमरमाणिज्जं भूमिभाग मुक्कपुःफजावयार कलियं करेंति' ३४ दीपना भई समरमणीय भूभिलागने माना पुण्याना પુજેથીજ ઢાંકી દે છે. એમ જણાય છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે ગુલમોની અગ્ર શાખાઓ જ્યારે પવનના ઝપાટાથી કંપાયમાન થાય છે. ત્યારે તેમાંથી અનેકપુપ જમીન પર નીચે પડે છે. તેનાથી એવું જણાય છે કે જાણે આ એકેક દ્વીપના બહુ સમરમણીય ભૂમિભાગ પર પુપને વરસાદ परसावी २३॥ छे. 'एगोरुय दीवेण तत्थ तत्थ बहूओ वणराइओ पण्णत्ताओ' ३. द्वीपमा भने स्थान५२ अना२नी सु४२ वनस्पतिया पर छ. 'ताओ गं वणराईओ किण्हाओ किण्हो भासाभो जाव रम्माओ महामेघनिकुर बभूयाओ'
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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