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________________ जोवाभिगम दुमगणा पन्नत्ता समाणाउसो !' एतनामका द्रुमगणाः वृक्षसमूहाः प्रज्ञप्ता कथितां हे श्रमण ! आयुष्मन् | इथंभूता एते उमगणाः तत्राह-'कुस' इत्यादि, कुसवि. कुमविमुद्धरुक्खमूला' कुशविकुशविशुद्ध मूलाः तत्र कुशाः-दर्भा, विकुशा: वल्कलादयस्तृणविशेषास्तै विशुद्ध रहितं घृक्षमूलं तदधोभागो येषां ते तथा ___ 'मूलमंतो कंदमंतो जाच बोयमंतो' ते वृक्षाः मूलवन्तः कन्दवन्तः स्कन्धवन्तः त्वग्वन्तः शाखावन्तः प्रवालवन्तः पत्रवन्तः पुष्पवन्तः फलवन्तो वीजवन्तः, 'पत्तेहि य पुप्फेहि य अच्छण्ण परिच्छण्णा' पत्रैश्च पुष्पैश्वाच्छन्नमतिच्छन्ना:-पत्रपुष्पैः 'आच्छन्न परिच्छन्ना' सर्वतः आच्छादिता पुत्रपुष्पाकी इत्यर्थः, "सिरीए अतीव २ उपसोभेमाणा उपसोभेमाणा चिट्ठति' श्रिया-शोभया अतीवातीर-अतिशयेन उपशोभमाना उपशोभमानास्तिष्ठन्ति ते वृक्षा इति, 'एगोरुष बीवेणे दीवे अनेक दन्तमाल नामके वृक्ष, और अनेक शैलमाल नामके वृक्ष है इन वृक्षों का मूल भाग 'कुलविकुस विसुद्ध हक्खमूला' कुश-और कांश के सद्भाव से सर्वथा रहित है अर्थात् इन वृक्षों के नीचे न घास है और न काश है दर्भ जातिका जो घास है उनका नाम कुश है तथा जो काश जाति का घाख होता है उसका नाम विकुश है ये सय वृक्ष 'मूलमतो, कंदवतो जाड बीयमंतो' प्रशस्त मूल वाले हैं, प्रशस्त कन्द वाले है, प्रशस्त स्कन्ध वाला है प्रशस्त छाल वाले प्रशस्त शाखाओं वाले हैं प्रशस्त प्रवालों-कोपलों-वाले है प्रशस्त पत्तों वाले हैं, प्रश स्त पुष्पों वाले हैं सुन्दर फलों वाले हैं, और सुन्दर घोजों वाले है। 'पत्ते हिय पुप्फेहिय, अच्छपण परिच्छण्णा' ये वृक्ष निरन्तर पत्रों और पुष्पों से लदे रहते हैं 'सिरीए अतीव २, उवलोभेमाणा २, चिति' અનેક દંતમાલ નામના વૃક્ષો અને અનેક શિવમાલ નામના વૃક્ષે છે. આ વૃક્ષેને भूभा 'कुस विकुस विसुद्धरुक्खमूला' पुश-हर्म गने सना समावया सर्वथा રહિત છે. અર્થાત્ આ વૃક્ષની નીચે ઘાસ કે ઠાસ લેતા નથી. દર્ભની જાતનું જે ઘાસ હોય તેને કુશ કહે છે અને કાસની જાતનું જે ઘાસ થાય છે તેને विश ४. छे. मा आधा 'मलमतो, कदमतो, आव बीयमता' प्रशस्त મૂળવાળા હોય છે. પ્રશસ્ત કંદવાળા હોય છે. પ્રશસ્ત સ્કધવાળા હોય છે. પ્રશસ્ત છાલ વાળા હોય છે તેમજ પ્રશસ્ત શાખાઓ વાળા હોય છે. પ્રશસ્ત પ્રવાલે. કૃપળ વાળા હોય છે પ્રશસ્ત પાનાએ વાળા હોય છે પ્રશસ્તવાળા હોય છે. સુંદર ફલેવાળા હોય છે. અને સુંદર બીજવાળા हाय छे. 'पत्तेहिय पुप्फेहिय. अच्छण्ण परिच्छण्णा' मा वृक्ष निर२ पत्रा पाथी बहाया हे छे, 'सिरीए अतीव अतीव उपसोभेमाणा उवसोभेमाणा
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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