SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.३२ सम्यग्मिथ्याक्रिययोरेंकदानिपेधः ४८५ पकरेइ' तस्मिन्नेव समये सम्यक्त्व क्रियामपि प्रकरोति । परस्पर सम्बलितोभय नियम पदर्शनार्थमाह-संमत्त किरिया' इत्यादि, 'संमत्त किरियापकरणयाए' सम्यक्त्व क्रिया प्रकरणतया 'मिच्छ त किरियं पकरेइ' मिथ्यात्वक्रिया प्रकरोति, तथा'मिच्छ तकिरियापकरणयाए संमत्तकिरियं पकरेई मिथ्यात्यक्रिया मिथ्यात्वी चासो क्रिया, प्रकरणतया सम्यक्त्वक्रियां प्रकरोति तदुभयकरणस्वभावस्य तत्तत्क्रियाक रणात् सर्वात्मना प्रवृत्तेः, अन्यथा क्रियाया अयोगादिति । 'एवं खलु एगे जीवे' एवम् उक्तमकारेण खलु एको जीवः 'एगेगं समएणं' एकेन समयेन एकस्मिन्नेव समये 'दो किरियाओ पकरेई' द्वे क्रिये-क्रियाद्वयं प्रकरोति-'तं जहा' तद्यथा-'संमत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च' सम्यक्त्वक्रियां च मिथ्यात्वक्रियां चेति ‘से कहमेयं भंते ! एवं' तत्कथमेत भइन्त ! एवम् हे भदन्त ! अन्यतीथिकैरुज्यमानमेकस्मिन्नेव समये क्रियाद्वयं संभवतीति तेषां कथनं किं सत्यम् ? इति गौतमस्य प्रश्नः, क्रिया भी करता है 'समत्तकिरिया पकरणयाए मिच्छत्तकिरिय पकरेड, मिच्छत किरिया एकरणयाए संपत्तकिरियं पकरेह' सम्पक्त्व क्रिया के करने के साथ ही मिथ्यात्व क्रिया भी जो करता है एवं मिथ्यात्व क्रिया के साथ ही सम्यक्त्य क्रिया भी करता है क्योंकि ये दोनों क्रियाएं परस्पर सम्बलित है अत: एक क्रिया के करने में दूसरी क्रिया का होना अनिवार्य है ‘एवं खलु एणे जीवे एगेणं समएणं दो किरियामो पकरेइ' इसी कारण एक जीव एक समय में दो क्रियाओं का कर्ता होता है। 'तं जहा संमत्त फिरियं च मिच्छन्त किरियं च' एक सम्यक्त्व क्रिया का और दूसरी मिथ्यात्व क्रिया का 'से कहमेय भंते! एवं' हे भदन्त ! जो अन्यतैर्थिकों ने एक जीव को एक लमय में दो क्रियाएं જે સમયે તે મિથ્યાત્વ ક્રિયા કરે છે, એજ સમયે તે જીવાત્મા સમ્યક્ત્વ ठिया ५ ४३ छे खमत्तकिरियापकरणयाए मिच्छत्तकिरिय पकरेइ, मिच्छत्तकि रिया पकरणयाए संमत्तकिरियपकरेइ' सभ्यत्व लिया ४२वानी साथे જ મિથ્યાત્વ ક્રિયા પણ કરે છે. અને મિથ્યાત્વ ક્રિયાની સાથેજ સમ્યકત્વ ક્રિયા કરે છે. કેમકે આ બે કિયાઓ પરસ્પર સંબંધવાળી છે. તેથી એક ठिया ४२वामां मील यानडामनिवार्य छे. 'एवं खलु एगे जीवे एगेणं समरण दो किरियाओं पकरेइ' मे २0 ४ ०१ : समयमा मे हियामानी जता-४२१! पाणी डाय छे त जहा समतकिरिय च मिच्छत्त किरिय'च' मे सभ्यइप लिया भने मी मिथ्यात्व ठियाने ४२वावाणे साय छे. 'से कहमेय भते! एवं" है मगन् अन्य तीथि आये मे छपने એક સમયમાં બે ક્રિયા કરવા વાળ કહેલ છે, તે શું તેઓનું એ કથન
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy