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________________ जीवामिगमसूत्रे पृथिवीति कथ्यते । 'सुद्धपुढवी' शुद्धपृथिवी पर्वतादिमध्ये विद्यमाना द्वितीया शुद्ध पृथिवीति कथ्यते । 'वाल्या पुडवी' वालुका पृथिवी सिकतारूपा पृयित्री, 'मणोसिला पुढवी' मनःशिला लोकमसिद्धा चतुर्थी पृथिवी 'सक्करा पुढवी' शर्करा पृथिवी शर्करामुग्डरूपा लघुपाषाणखण्डमरूपा पृथिवी पञ्चमी । 'खरपुढवी' खरपृथिवी खरा पाषाणादिरूपा पप्ठी एवं च इलक्षण वालका मनः शिलाशकरा खग प्रतिभेदात् पट्पकारा पृथिवी भवतीति भावः । अधुना लक्षणादि पृथिवीना स्थितिनिरूपणार्थमाह-'सहा पुढवी णं भते' इलक्ष्णपृथिवीनां-उरगपृथिवी जीवानां खल भदन्त ! 'केवयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं कियत्काल पर्यन्तं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथिता इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोमुहत्त' जघन्येनान- मुहर्त यावर उलक्ष्य हुआ खाये हुए पत्थर में ले स्वतः बालुका का चूर्ण होता है 'सुद्ध पुदवी यह प्रथिवी पर्वत आदि के मध्य में विद्यमान रहती है 'यालया पुढवी' घालुका पृथिवी-यह स्वभावतः पालुका के रूप में होती है 'मणोसिला पुढवी' मनः शिला पृथिवी 'खरपुढवी' खरपृथिवी-यह पृथिवी पाषाण आदि रूप होती है। इस तरह लक्षण. शुद्ध घालुका, मनः शिला, शर्करा और खर इन छह भेदों वाली पृथिवी होनी है। अच सूत्रकार लक्ष्म आदि पृथिवियों की स्थिति आदि का निरूपण करते हैं. इस गौतम ने प्रभुश्री से ऐसा पूछो है-'सहा पुढवी णं भंते । केवइयं काल ठिईपगत्ता' हे भदन्त ! लक्षण पृथिवी की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर में प्रभु करते हैं 'गोधमा ! जहन्ने ण अंतो मुहतं अकोसेणं एगं वामसहस्स' हे गौतम इलक्षण पृधियो दुयेगेस पत्यमांथा चातानी भेजे। तीन' यय-यू। थाय छ 'सुद्धपुढवी' शुद्ध पृथ्वी, पत विरेनी ६यमा विद्यमान २९ छे. 'वालुया पुढवी' दादु। पृथ्वी, मा पृथ्वी विgar वायु। रेताना ३५मा हाय छे 'मणोसिला पुढवी मन:शिव पृथ्वी 'खरपुढवी' ५२ पृथ्वी । पृथ्वी पाषाय पत्थर રૂપ હોય છેઆ પ્રમાણે લક્ષ્ય, શુદ્ધ, વાલુકા, મનઃશિલા, શર્કરા અને ખર આ છ ભેદવાળી પૃથ્વી હોય છે. હવે સૂવાર 8 ફણ વિગેરે પૃથ્વીની સ્થિતિ આદિનું વર્ણન કરે છે. આ सधमा श्रीगौतमस्वामी प्रभुश्री ने पूछे छे है 'सण्हा पुढवी णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' है सन् १३६४ पृथ्वीनी स्थिति उटमा ४ ની કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે 'गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणे एवं वाससहस्स' ७ गौतभा. २०६१
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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