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________________ ४४० जीवामिगमस्से कादिनामकानि विमानानि सन्ति तथैव कामादिनामकान्यपि विमानानि सन्ती त्युत्तरम् । 'णवरं सत्तओवासंबराई सेसं तहेन' नवरमत्र सप्तावकाशान्तराणि, शेष-शेषमूत्र तथैव अचिरादि सूत्रवदेव व्याख्येयम् । स खलु देवस्तानि विमानानि पूर्वोक्तया दिव्यया देवगत्या कश्चित कातिव्रजेत् कश्चिद्देवः किश्चनविमान व्यतिक्रमेन किश्चन विमानं नो व्यतिक्रमेदित्यादिकं सत्र पूर्वदेव ज्ञातव्यमिति भावः । ___'अस्थि णं भंते ! विमाणाई' रान्ति खन यदन्त ! विमानानि 'विजयाई विजगनि-विजयनासकानि वेजयंताई वैजयन्तानि 'जयंताई' जयन्तानि 'अपराजियाई' अपराजितानि इति प्रश्ना, भगवाना-'हा अत्यि' हन्त गौतम ! परन्तु यहां इनकी विशालता जानने के लिये 'णवरं महत्तमोधा संतराइ विनमे सेसं तहेच' यहां का अवकाशान्तर शाइना चाहिये इस तरह इतने अवकाशान्तर एक बार में घूमने की शक्तिवाले देव कम से कम एक दिन तक या दो दिन तक अधिक से अधिक छह मास तक चलता हुआ कोई एक देव उन कामादि विमानों में से किसी एक विमान को ही उल्लङ्ग सफला तथा किसी को नहीं भी उल्लंघन कर सकता है। ऐसी घड़ी भारी विशालता न विमानों की है इत्यादि रूप से सब कथन पूर्वोक्त जैसा ही यहां समझ लेना चाहिये, 'अस्थि णं भंते ! विजयाई विमाणाई' हे भदन्त | क्या विजय मानके विमान है ? 'वेजयंताई" वैजयन्त नाम के विमान हैं 'जयताई' जयन्त नाम के विमान में 'अपराजिया' अपराजित नाम के विमान है ? gan . ५९ महिया मा विमानानी विशालता वा माटे 'णवर सत्त आवासंतगई विक्कमे सेसं तहेव' मडियां सात अशान्त वा नये. આ રીતે આટલા અવકાશાન્તરો એક વારમાં ઓળંગવાની શક્તિવાળે દેવ ઓછામાં ઓછા એક દિવસ સુધી અથવા બે દિવસ સુધી અને વધારેમાં વધારે છ મહીના સુધી ચાલતો કે દેવ એ કામ વિગેરે વિમાને પિકી કઈ જ એકાદ વિમાનને જ ઓળંગી શકે છે. તથા કેઈને ઓળંગી ન પણ શકે. અર્થાત્ કઈક જ વિમાનને પાર કરી શકે છે, અને કેઈકને પાર ન પણ કરી શકે. આવી ઘણી મોટી વિશાળતા આ વિમાનની છે. ઈત્યાદિ પ્રકારનું સઘળું કથન પહેલા કહ્યા પ્રમાણેનું સમજી લેવું. 'अस्थि ण भते । विजयाई विमाणाइ' से भगवन् शुविय नाभर्नु विभान छ १ 'वेजय'ताई' यन्त नामनु विभान छ ? 'जयंताई" यात नामर्नु विमान छ १ 'अपराजियाई' २५५२ त नामनु विभान छे? मा
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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