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________________ जीवामिगमत्रे ४३८ यस्तमितक्षेत्र प्रमाणमधिकृत्य यावत्ममाणेन महान्ति कवितानि तावत्ममाणान्येव अर्चीप, इत्यादि विमानान्यपि महान्ति वाच्यानि । 'नरं पवतियाई पंन ओवासंतराई' नवरं - केवलम् अत्रायं विशेषः । एतावत्कानि अत्र एतावतप्रमाणानि पश्यावकाशान्तराणि सन्ति, स्वस्तिकादिविमानमृगेतु त्रीणि अवकाशान्तराणि प्रोक्तानि । 'अत्थेगइयस्स देवस्स पुगे विकमे सिया' अस्त्वेकस्य देवस्यैको विक्रमः - परिभ्रमणं स्यात् 'सेसं तं चेव' शेषं तदेव, शेषं शेषसूत्रं तदेव - पूर्वसूत्र वदेव व्याख्येयं यावत् 'एमहालपाणे गोयमा ! ते चिमाणा पनवा' एतावत्माणकानि गौतम ! विमानानि प्रज्ञयानीति पर्यन्तम् । ही कथन इन विमानों की महत्ता के सम्बन्ध में भी कर लेना चाहिये, परन्तु अन्तर इतना है कि 'एवतिमाई पंच ओवा संग' यहां पूर्वोक्त प्रमाण वाले पांच अवकाशान्तर होने से जितना क्षेत्र रूप विक्रम ग्रहण किया गया है उतने क्षेत्र को पांच गुणा करने पर 'अत्थे यस्त देवरस एगे चिकमे' इस तरह का इतना क्षेत्र किसी एक देव का एक विक्रम रूप होना है 'सेलं तं चेव' बाकी सन पूर्व की तरह व्याख्यात कर लेना चाहिये अर्थात् एक बार में पूर्वोक्त प्रमाण क्षेत्र तक घूमने की शक्ति वाला कोई एक देव अपनी उत्कृष्ट आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाली गति से निरन्तर कम से कम एक दिन तक दो दिन तक और अधिक से अधिक छह मास तक चलता रहे, तब भी वह देव अर्चिः आदि विमानों में से किसी एक विमान को उल्लङ्घन कर उसके पार जा વિગેરે વિમાનાની મહત્તના સમધમાં જે પ્રમાણેનું કથન કરવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણેનુ કથન આ વિમાનાની મહત્તાના સબંધમાં પણ કરી लेवु लेामे. परंतु मे जन्तेमा सेट ४ अंतर हे 'एवतियाई' पंच भोषास तराइ " मडियां पूर्वेति प्रभावाला पांच अव४.शान्तर होवाथी જેટલા ક્ષેત્રરૂપ વિક્રમ ગ્રહણ કરેલ છે. એટલા ક્ષેત્રને પાચ ગણુ કરવાથી 'अत्थे गचस्स देवरस एगे विकमे' मा प्रभाषेनुसार क्षेत्र मे हेव ना मे विभक्तिश्य होय छे. 'सेस' त' चेव' जाडीनु अघणु' उधन पडेला પ્રમાણે કહી લેવું જોઇએ. અર્થાત્ એક વારમાં પૂર્વક્તિ પ્રમણના ક્ષેત્ર સુધી ઓળંગવાની શક્તિ વાળા કોઈ દેવ પેાતાની એ ઉત્કૃષ્ટ આદિ પૂર્વોક્ત વિશેષ@ાવાળી ગતિથી દરરાજ એછામાં એાછા એક દિવસ સુધી અથવા એ દિવસ સુધી અને વધારેમાં વધારે છ માસ સુધી ચાલ્યા કરે તે પણ તે દેવ અર્ચિ વિગેરે વિાના પૈકી કેઇ એક વિમાનને એળગીને તેને પાર
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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