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________________ प्रमेयधोतिका टीकाप्र.३ उ.३ स्.२७ गन्धाङ्गस्वरूपनिरूपणम् 'कइ णं भंते ! पुप्फजाइकुलकोडी जोणी पमुहसयसहस्सा पन्नता' कति . खलु भदन्त ! पुष्यजातिकुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि-कथितानीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोथमा' हे गौतम ! 'सोलसपुप्फ- . जाइ कुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा पन्नत्ता' पोडशपुष्पजातिकुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि प्रज्ञप्यानि-कथितानि । ताल्येव दर्शयति-जहा' इत्यादि, 'तंजहां तद्यथा-'चत्तारि जलपराणं' चत्वारि कुलकोटियोनिममुखशतसहस्राणि जळचराणां जलजानां कमलादीनां जातिभेदेन अवन्ति, समा-'चत्तारि थलचसणं' चत्वारि कुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्त्राणि स्थलचराणां स्थलजाराला कोरण्डका. दीनां जातिभेदेन, तथा 'पत्तारि महारुविखयाणं' चत्वारि कुछकोटियोनि प्रमुग्वशतसहस्राणि महावृक्षाणां मधुझादी वाय. 'चत्तारि महारगिलाण चत्वारि कुल कोटियोनि प्रमुखशतसहस्त्राणि महागुलिमकानां जात्यादीनां नातिभेदेन भवन्तीति। इन सब गाथाओं का अर्थ तथा गणित पहले काह चुके है। 'काणं भंते ! पुप्फ जाइ कुलकोडी जोणी नुह समझा पन्नत्ता' हे भदन्त ! पुष्पों की कितनी लाख कुलोडियांच्याही छाई है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'पोयमा ! सोलह पुप्फजाइ कुलकोडी जोणी पमुहसयसहस्सा पन्नत्ता' हे गौतम ! पुष्पों की सोलह लाख कुल कोटियां कही गई है। जो इस प्रकार से है-'चत्तारि जलथरा चार लाख जल में उत्पन्न होने वाले कमलों की 'चत्तारि शलया ' च र लाख स्थल में उत्पन्न होने वाले कोरण्ट आदि के पुष्पों की 'चत्तारि महा गुम्मियाण' और चार लाख महा गुलिक आदि के पुष्पों की कल कोटियां होती है ये कुल कोटिया जोति के भेद से होती है। આ બને ગાથાઓને અર્થ તથા ગણિત પહેલાં ઉપર કહેવામાં भावी गये . श्रीगीतभावामी भगवान श्रीमहावीर प्रसुन पूछे छे । 'कहि णं भंते ! पुप्फजाई कुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता' 3 भगवन् पुण्यानी इस કેટિયે કેટલા લાખની કહેવામાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી गौतमस्वाभी 'गोयमा ! सेलस षुप्फजाई कुलकोही जोणीपमुहसय पहस्सा पण्णत्ता' हे गौतम ! पानी सण सास ४८ टीयो सेवामा भावी छ. २ मा प्रभारी छे 'चत्तारि जलयराणं' बसमा ५न्न थापा मणानी या२ साम 'चत्तारि थलयराणं' स्थमा जपन्न यावर विशेष पुपानी याराम खटिया. तथा 'चत्तारि महा गुम्मियाणं' या२ साप महा ગુલિમક વિગેરેના પુપની કુલ કેટી જાતિના ભેદથી હોય છે. जी० ५४
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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