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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.२६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम् -४९९ जलचर पञ्चेन्द्रिय जीवा जलचर पञ्चेन्द्रियेभ्य उद्धृत्य यावदधः सप्तम्यां गमनस्य श्रुतत्वात्, ऊन यावत् सहस्रारकल्पमिति जाति कुलकोटि:-'अद्धतेरसजातिकुलकोडी जोणिपमुइसयसहस्सा पन्नत्ता' अर्द्ध त्रयोदशजातिकुलकोटियोनि प्रमुखशत. सहस्राणि प्रज्ञतानि, जलचर पञ्चन्द्रिय जीवानामिति 'चउरिदिया णं भंते।' चतु. रिन्द्रियाणां जीवानां भदन्त ! 'कइ जाइकुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा पनत्ता' कति-किं प्रमाणकानि जाति कुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानीति पश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नवजाइ कुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा भवंतीति समक्खाया' नव जाति कुलकोटि योनि प्रमुखशतसहस्राणि-नवलक्षाणि समाख्यातानि । 'तेइंदियाणं पुच्छा' त्रीन्द्रियाणां जीवानां भदन्त ! कतिजातिकुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि, प्रज्ञप्तानीति प्रश्नः, भगवानाइ-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्ठ जाइकुल जाव समक्खाया' अष्ट जाति कुळकोटियोनि प्रमुखशतसहस्त्राणि समाख्यातानीति । 'बेइंदिया णं भंते ! कइ जाई पुच्छा' द्वीन्द्रियजीवानां भदन्त ! कति जाति कुल कोटियोनि वृत हुआ जीव सातवीं पृथवी तक जाता है क्योंकि तन्दुलमत्स्य॑ जो कि महामत्स्य की भृकुटी के बालों में रहता है मरकर सातवीं प्रथिवी में जाता है ऐसा शास्त्रों में सुना जाता है । 'अद्धतेरसजाति कुल कोडी योणि पमुहसयसहस्सा पन्नता' जल चर जीवों की कुलकोडी साढ़े बारह १२॥ लाख हैं 'घउरिया णं भंते !' हे भदन्त ! चौइन्द्रिय जीवों की कितनी लाख कुल कोडियां हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा। नव जाइ कुल कोडी जोणी' हे सदन्त ! तेइन्द्रिय जीवों की कितनी लाख कुलकोडी हैं ? 'गोयना ! अजाइ कुल जाव मक्खाया' हे गौतम! तेइ. 48 द्वारा ४९ छे. 'णवरं उच्चट्टित्ता जाव अहे सत्तमिं पुढवि" सयरामाया નીકળેલા જીવ સાતમી તમસ્તમાં પૃથવી સુધી જાય છે, કેમકે તંદુલમર્યો કે જે મહા ભસ્યની ભામરાના વાળમાં રહે છે. તે મરીને સાતમી પૃથ્વીમાં જાય છે. એ प्रमाणेनु ४५न ४२मा मावस छ. 'अद्धतेरस जातिकुल कोडी जोणिपमुहमयसहस्सा पण्णत्ता' लयरेनी पुस टी १२॥ सा मार रामनी छे. चरि दियाण भते ! है भगवन् । यार ।द्रियावाणा नी रीटा मनी छे ? 24। प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु ४७ छ , 'गोयमा ! नव जाइ कुल कोडी जोणो.' गीतम! यार द्रिये। वाणा वानी न aru gatी हाय छे. 'तेइंदियाणं पुच्छा' हे भगवन्त द्रियावासा वानी तहटीटा सामना ४डस छ ? उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ । 'गोयमा ! अद्वजाइ कुल जाव 'मक्खया' गौतम ! द्रियावाणा वानी मा तामस टी छ,
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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