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________________ जीवामिगमसूत्र द्विमकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिता इति । भेइद्वयं दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'मुहुम पुढीकाइय एगिदिय तिरिकखजोणिया'मूक्ष्मपृथिवी कायिककेन्द्रियतिथंग्यौनिकाः सूक्ष्मत्वं सूक्ष्मनामकर्मोदयात् । 'वायर पुढवीकाइय एगिदिय तिरिक्खजोगिया य' वादर पृथिवीकायिके केन्द्रियतिग्मोनिकाच, तथा चसूक्ष्मवादरभेदेन पृथिवीकायिकाः द्विविधा भवन्तीति । 'से कि तं मुहुम पुढवीकाइय एगिदियतिरिक्खजोणिया' अथ के ते सूक्ष्मपृथिवीकायिकेन्द्रिय. तिर्यग्यानिकाः ? सूक्ष्मपृथिवीकापिकानां कियन्तो भेदाः ! इति प्रश्ना, उत्तरयति-'मूहमपुढवीकाइय एगिदियतिरिक्खजोणिया विद्या पण्णता' सूक्ष्म पृथ्वोकायिकेन्द्रियातयेग्योनिका जीवाः द्विविधाः-द्विमकारकाः मज्ञप्ता:-कथिता इति । 'तं जहा' तद्यथा-'पज्जत सुहुमपुढवीकाइय एगिदिय तिरिक्खजोणिया' पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक केन्द्रियतिधयोनिकाः 'अप. पृथिबी काधिक एकेन्द्रिय तिर्यश्च जीव दो प्रकार के होते हैं-'तं जहा' जैसे 'सुहम पु० एगिदिय० सूक्ष्म पृथिवीकाधिक एकेन्द्रियतिर्यञ्च और 'वायर पुढवीकाइयए० ति०' पादर पृथिवी कायिक एलेन्द्रिय तर्यश्च सूक्ष्म नाम कर्म के उद्घ वाले सूक्ष्म पृथिवी कायिक एकेन्द्रिय जीव होते हैं और बादर नाम कर्म के उद्य वाले बादर पृथिवी कायिक एकेन्द्रिय जीव होते हैं। लेकितं सुटुमपु० 'हे भदन्त ! सूक्ष्म पृथिवी कायिक एकेन्द्रिय जीव शितने प्रकार के होते हैं-उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सुष्टुमपु० एगि. दिय तिरिक्खजो० दुविहा पन्नत्ता' सूक्ष्म पृथिवी कायिक एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं 'तं जहा-जैसे-'पजत्तसुखमपु०' पर्याप्त सूक्ष्मपृथिवी कायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्यानिक और 'अपनत्त सुहम पु०' 'अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवी कायिक एकेन्द्रिय लियंग्योनिक 'ले त सुहम इस यायिक सद्रियाणा ति य ७२ मे २ना डाय छे. 'जहा' मे प्रा२। 21 प्रभाय छे. 'सुहुम पु, एगि दिय.' सूक्ष्म पृथ्वी थि: से द्रियाणा तियय अन 'वायर पुढवीकाइय ए. ति.' मा४२ पृथ्वी थि: से ઈદ્રિયવાળાતિર્યંચ સુરમ નામકર્મના ઉદયવાળા સૂમ પૃથ્વીકાવિક એક ઈદ્રિયવાળા જ હોય છે અને બાદર નામ કર્મના ઉદયવાળા બાદર પૃથ્વીકાલિક એક ઈ દ્રિયવાળા જ હોય છે. ____ 'से कि त सुहुम' लगवन् सूक्ष्म पृथ्वी यि मे द्रिया tean 4.१२ना हाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४३ छ । 'सुहुम प. एगिदियतिरिक्ख जो. दुविहा पण्णत्ता' सूक्ष्म पृथ्वी।यि मे द्रियपापा ४२॥ य छे. 'त' जहा' र 'पज्जत्त सुहम पु.' पर्याप्त
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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