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________________ ३१२ जीवामिगमस्ये धृति पा-चित्तस्वास्थरम् 'मई वा' मति वा सम्यगीहापोहरूपाम् उवल. भेज्जा'- उपळभेत-माप्नुयात् ततः 'सीए' शीतः वापशरीरशीती भावाद 'सीई खूप शीतीभूतः शरीरान्तरपि नितीभूतः सन् 'संकममाणे' सम्-एकीमावेन. कमत्-गच्छन् ‘सायासोरखबहुले यावि विहरिजा' साहासौख्याहुलश्चापि. साख माछाद स्तस्यधानं सौख्यं न तु अभिमानजनित माहलादपिरस्तिम्. सारसौख्यवहुलश्चापि विरहेछ-स्वेच्छया परिभ्रमेदिति । 'एवामेव गोयमा.. एवम्-अनेन पूर्वकथित दृष्टान्तप्रकारेण हे गौतम! 'असम्भावपट्ठवणाए'. असदभाव प्रस्थापनया-असदभावकल्पनया नेदं यक्ष्यणाणमभूत केवलं नरकगतोष्णवेदनाशः याथार्थ पतिपत्तये अतत्कल्प्यने इत्ययः, 'उसिण है। इस तरह क्षण मात्रकी निदो के लाभ से स्वस्थ हुआ वह हाथी 'सइंया' अपनी स्मरण शक्ति को 'रतिषा' आनन्द को 'धिइंचा' धैर्य को चित्त की स्वस्थता को-'उचल भेज्जा' पा लेता जय गी से हाथी आकुल व्याकुल हो रहा था तो उस स्थिति में उसकी स्मृति रति आदि सय मन्द पड गये थे अब जब उसे चैन प्राप्त हुभो तो यातें उसे यदि आने लगी चित्त में प्रफुल्लता आ गई और मन में धैर्य जग गया इस तरह शरीर में शीतलता के प्रभाव से 'सीयभूप' स्वयं शीती भूत हमा बह गजाम 'संकममाणे २, 'अप वहां से चल देता है और 'साया मोक्खाबहुलेयाधि विहरिज्जा' चित्त में जगी हुई एक प्रकार की आहूल द रूप प्रसन्नता रूप सुख परिणति से अपने आपको अनन्द विभोर मानने लगता है और इटलाता हुआ इधर उधर घूमने लगता है. 'एयामेय गोयमा।' इसी तरह से हे गौतम ! 'असमाव पटवणाए' त हाथी 'सइवा' पातानी भर शतने रतिं वा' मानने "घिई वा धेन थित्तनी २३स्थताने 'उबलभेज्जा' पामे छ, न्यारे सभी थी त साथी माण વ્યાકુળ થો હતો ત્યારે એ સ્થિતિમાં તેની સ્મૃતિ રતિ વિગેરે મંદ થઈ ગયા હતા. અને જ્યારે તેને આ રીતે ચેતન પ્રાપ્ત થયું ત્યારે તેને અનેક વાતે યાદ આવવા લાગી ચિત્તમાં પ્રફુલ પણું આવી ગયું અને મનમાં भावी आयु मा शत मा शशमा ४1 प्रसावया 'सीयभूर' पाते शाती भत येते ४२४ 'स'कममाणे, सकममाणे ते त्यांचा यावा ये छे. भने 'सायासोकख बहुलेया वि विहरिता' वित्तमा नगेटी मे ५४नी આહલાદ રૂપ પ્રસન્નતા રૂપ સુખ પરિણતીથી પોતે પોતાને આનંદ રૂપ માનવા an-छ. भने ५४ मत माम तम ३२१ सागे छ 'एवामेव गोयमा !' और प्रमाणे गौतम! 'असन्भावपट्ठवणाए' भस भाव ४६पनाने सधन
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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