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________________ प्रमेयद्योतिको टीका प्र.३ उ.२ ६.१७ नारकजीवोत्पातनिरूपणम् २२७ धणूई अड्राइज्जाओ रयणीओ' उत्कएँग पञ्चदश धपि साढे द्वे रत्नी पञ्चदशधनु द्वौं हस्तौ एका वितस्तिरेतावत्पमाणा भवतीति । 'दोच्चाए' द्वितीयायां शराप्रभा पृथिव्यां ये नारकास्तेषां शरीरावगाहना 'भवधारणिज्जा जहन्नओ अंगुलासंखेज्जइमार्ग' या भवधारणीया सा जघन्यतो अंगुलासंख्येयभागप्रमाणा भवति 'उकोसेण पण्णरसधण्इं अडाइजाओ रयणीओ' उत्कर्षेण पश्चदशधनूंषि साः द्वे रत्नी, 'उत्तर वेउविया जहन्नेण अंगुलस्स संखेज्जइमागं' उत्तरवैक्रियाशरीरावगाहना जघन्येनाङ्गुलस्य संख्येयभागप्रमाणा भवति, 'उक्कोसेण एक्कतीसं धणूई एक्का रयणी' उत्कएँग एकत्रिंशद्धषि एका रनिः,एतावत्ममाणा भवतीति । 'तच्चाए' तृतीयस्यां वालुकाममा पृथिव्यां ये नारकास्तेषां शरीरावगाहना-'भवधारणिज्जा एक्कतीस धणूई एक्का रयणी' अवधारणीया शरीरावगाहना जघन्येनाङ्गलासंख्येयभागप्रमाणाः उरकणेकत्रिंशद् धनपि एका रनि: 'उत्तरवे उधिया बासढि धणूइं दोन्नि रयणीयो' उत्तरक्रिया शरीरावगाहना जघ. उस्कृष्ट से 'पन्नरसधणूई अड्डाहज्जाओ रयणीओ' बह पन्द्रह धनुष ढाई हाथ प्रमाण 'दोच्चाए' द्वितीय शकरामभा पृथिवी में जो नारक हैं उनकी भवधारणीयशरीरावगाहना जघन्य से तो अंगुल के असंख्यात भाग रूप हैं और उत्कृष्ट से 'पण्णरलधणूई अडाइज्जाओ रघणीओ' पन्द्रह धनुष ढाई हाथ की है. लथा-यहां जो उन्तरक्रिया रूप शरीरा वगाहना है वह 'जहन्नेणं' जघन्य से तो अंगुल के संख्यात वे भाग है और 'उक्कोसेणं' उत्कृष्ट ले 'एश्कातीसं धणूई एका रथणी' एकतीस धनुष एक हाथ है 'तचाए' तृतीय पृथिवी जो बालापमा है उसमें नारकों की भषधारणीय शरीरावणाहना बह जघन्य ले तो अंगुल के असंख्यात वे भाग रूप है और उस्कृष्ट से इकतीस धनुष एक हाथ धणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ' त ५१२ धनुष मढी डाथ अमानी छ. 'दोच्चाए' भी श मा पृथ्वीमा २ ना२३। छ, तनी सधारणीय शरी વગાહના જઘન્યથી તે આગળના અસંખ્યાતમા ભાગ રૂ૫ છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી 'पण्णरस धणूई अड्ढाइन्जाओ रयणीओ' ५४२ धनुष मने ही खायनी छे. तथा उत्तर वैयि नामनी शरीरावाना छे, ते 'जहन्नेणं' न्यथा तो भांगणना सयातमा मा ३५ छ, भने 'उकोसेण' थी 'एक्कती धणूई एक का रयणी' येत्रीस धनुष मन मे लायनी छे. तच्चाए' श्रील તાલુકા પ્રભા નામની જે પૃથ્વી છે, તેમાં નારકની ભવધારણીય શરીર વગાહ ના જઘન્યથી તે આગળના અસંખ્યાતમા ભાગ રૂપે છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એક
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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