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________________ प्रमेययोतिका टोका प्र. ३ उ.२ सू. १७ नारकजीवोत्पातनिरूपणम् असंज्ञिभ्य उत्पद्यन्ते नो सरीसृपेभ्य उत्पद्यन्ते किन्तु पक्षिभ्य उत्पद्यन्ते यावन्मत्स्य मनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते' 'पंकपभाए णं भंते! पुढवीए नेरइया, किं असण्णीहितो उववज्जंति जाव मच्छमणुरहितो उपवज्जति ? गोयमा ! नो असन्नीहिंतो उववति, नो सरीसिवेहिंतो उववज्र्ज्जति, नो पक्खीहिंतो उज्जेति चउप्पर हितो उववज्र्ज्जति । 'पङ्कप्रभायां खलु भदन्त ! पृथिव्यां नैरयिकाः किम् असंज्ञिभ्य उत्पद्यन्ते यावन्मत्स्यमनुजेभ्य उत्पद्यन्ते, गौतम नो असंज्ञिभ्य उत्पद्यन्ते नो सरीसृपेभ्य उत्पद्यन्ते नो पक्षिम्य उत्पद्यन्ते किन्तु चतुष्पदेभ्य उत्पद्यन्ते । एवमुत्तरोत्तर उत्तर प्रभु कहते हैं हे गौतम! बालुकाप्रभा पृथिवी के नरकावासों में नैरयिक 'नो असण्णीहिंतो उवबज्जेति नो सरीसिवेहितो उववज्जंति' असंज्ञी जीवों में से आकर के उत्पन्न नहीं होते है, और न सरीसृपों में से आकर के उत्पन्न होते हैं किन्तु 'पक्खीहिंतो उबवज्जति, संज्ञी पक्षियों में से आकर के उत्पन्न होते हैं। 'जाव मच्छमणुरहितो वववनंति' यावत् महस्य और मनुष्यों में से आकर के उत्पन्न होते हैं। 'पंपभाएणं भंते! पुढवीए नेरइया किं असण्णीहिंतो उववज्र्जति जाय मच्छमणुए हिंतो उववज्जंति' हे भदन्त ! पङ्कप्रभा पृथिवी के नरकावासों में नैरयिक क्या असंज्ञी जीवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या घावत् मत्स्य में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम ! पद्मभा पृथिवी के नरकावासों में नैरयिक असंज़ी जीवो में से आकर के उत्पन्न नहीं होते हैं सरीसृपों में से पृथ्वीना नरहावासोमा नैरयि। 'नों असण्णीहि तो उवत्रजति नो सरीसिवेहितो ववज्जति' मसज्ञी लवासांथी भावीने उत्पन्न थता नथी. ते सरीसृपोर्भाथी व्यावीने यशु उत्पन्न थता नथी. परतु' 'पक्खीहिंतो ! वषजति' संज्ञी पक्षियो भांथी भावीने उत्पन्न श्राय 'जॉव मच्छमणुपहितो उबजति' यावत् मत्स्य मने मनुष्याभांथो भावीने 'न थाय छे 'प' कप्पभाषणं भंते! पुढवी नेरइया किं असण्णीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुएहिं तो उववજ્ઞ'ત્તિ' હે ભગવન્! પકપ્રસાપૃથિવીના નરકાવાસે માં ઉત્પન્ન થત્રાવાળા નૈરિયકા શુ' અસ'ની જીવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? ગૌતમસ્વામીના આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે હું ગૌતમ ! પંકપ્રભા પૃથ્વીના નરકાવાસામાં ઉત્પન્ન થવાવાળા નૈરિયકા અસન્ની જીવેામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી. તેમજ સરીસૃપામાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થતા નથી. પરંતુ ચાપગા સિંહામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, યાવત
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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