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________________ पोयृपर्षिणी-टीका स्र ५९ आजीविक विषये भगवद्गीतमयां स्थाद ६३३ एारुणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं परियायं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवति । तर्हि तेसि गई, बावीसं सागरोत्रमा टिई, अणाराहगा, सेसं तं चैव || सू० ५९ ॥ , , उष्ट्रिकाश्रमणा ते णं एयारूपेण विहारेण विहरमाणा' ते सह एतद्रूपेण निहारेण रिहन्त, 'हू वासाई परियाय पाउणित्ता' बहूनि वर्षाणि पर्याय पालयिवा, 'कालमासे are far काम का कृत्या, 'उकोसेण अच्चुए कप्पे देवताए उववतारो भांति ' उर्पेण अच्युते कल्पे देवयेनोपत्तारो भवन्ति, ' तर्हि तेसिं गई ' नपा गति, 'बावीस सागरमा ठिई 'हागिति सागरोपमानि स्थिति | 'अणाराहगा' अनाराधका 'सेस तं चेत्र ' शेष तदेव | सू० ५९ ॥ 1 है, इस प्रकार जो अभिग्रह वाले है, (ते एयारूपेण विहारेण विरमाणा बहूई साह परियाय पाउण माने काल किया उनोसेग अन्चुए कप्पे देवत्ताए उवचारो भवति) ये सन इस प्रकार विहार करते हुए बहुत वर्षों तक इस पर्याय को पालकर काल अवसर में काल करके उत्कृष्ट चारहवें देवलोक अव्युत कल्प मे देव की पर्याय से उपन्न होते है । (तर्हि तेसिं गई) वहीं पर उनकी गति होती है । (सावीस सागरोवमाई ठिई) २२ सागर की इनकी स्थिति चहा होती है । (अणाराहगा) ये सन अनाराधक होते है । (सेसं तं चैव) अपशिष्ट पूर्ववत् समझना चाहिये ॥ सू ५९ ॥ કોઈ મેટા વાસણ કોઠી આદિમા પ્રવિષ્ટ થઇને જે તપશ્ચર્યા કરે છે, આ પ્રકાरना मलिथडवाजा ने थे, (ते ण एयारूपेण विहारेण विहरमाणा बहइ वासाइ परियाय पाउणत्ता काल्मासे कालं किच्चा उक्कोसेण अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववतारो भगति) या गधा था अारे विहार ग्लाडरता धा वरसो सुधी C આ પર્યાયને પાળીને ઢાલ અવસરે કાલ કરીને ઉત્કૃષ્ટ ખામાં અચ્યુત કલ્પમા हेवनी पर्यायी उत्पन्न थाय छे (तर्हि तेसिं गई) त्या तेभनी गति थाय छे, (arate raders fठई) गावीश सागरनी तेमनी स्थिति त्या होय छे (अणाराहगा ) मा गधा अनाराध होय हे (सेस त चेन) गाडीनु मधु पूर्व प्रभा भडयो (सृ पक्ष)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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