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________________ ६१२ ৗবানি चट्टखेडं ६६, णालियाखेड ६७, पत्तच्छेज ६८,कडच्छेज ६९,सजीबं ७०, निजीवं ७१, सउणरुय ७२-मिति वायत्तरिकलाओ सेहावित्ता सिम्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिति ॥ सू०४६॥ 'नालियाखेड' नालिकाखेलग-यूतपिशपम्-मादिष्टदायाद विपरीतपागक्रनिपतन मिति नालिकाया यर पागा पात्यते । यद्यपि ते एवास्य समावेशो भवितुमर्हति तथापि नालिकाखेलप्राधान्यज्ञापनार्थ भेदेन ग्रहणम् ६७, 'पत्तरेने पाच्छेद्यम् =अष्टोत्तरशतपत्राणा मध्ये विवक्षितमख्याकपत्रच्छेदने हस्तलाघनम् ६०, 'कडच्डेन' कडच्छेद्यम्-कट (चटाश वत् क्रमान्छेय वस्तु यत्र विज्ञाने तत्तथा तत् ६९, 'सन्नी' सजीव-सजीवकरण-मृतधाचा दोना सहजस्वरूपापादनम् ७०, 'निजीव' निर्जीव-निजीकरणम्-हेमादिधातुमारण पारद मारण वा ७१, 'सउणण्य' शकुनरुतम् , अन शकुनपद रुतपद चोपलक्षणम् , तेन सर्वशकुनमग्रह , गतिचेष्टादिगवलोकनादिपरिग्रहश्च ७२, 'इति यावत्तरिकलाओ' इति द्वासात तिकला -द्वासप्ततिपुस्पकला 'सेहावित्ता सिक्खावेत्ता' सेधयित्वा शिक्षयित्वा च 'अम्मा पिईणं उवणेहिति' मातापित्रोरुपनेष्यति समर्पयिष्यति ॥ स ४६॥ हुआ है । (६७ नालियाखेड) यूतविशेष खेलने की-नालिका में पाशे डालकर जुआ खेलने की, (६८ पत्तच्छेन्ज) पर छेदन करने की, १०८ पत्रों में से विवक्षित पत्र का छेदन करने मे हाथ की कुशलता की, (६९ कडच्छेज्ज) कट की अर्थात् चटाई की तरह क्रम २ से छेदन करने की, (७० सज्जीव) मारी हुई धातुओं को पुन प्रकृतिस्थ करने का (७१ निजीन) निर्जीर करने की हेमादिक धातुओं को मारने की, अथवा पारे को मारत की, (७२ सऊणरुय) पक्षियों के गन्द पहिचानने की उनकी गति, चेष्टा एव अवलोकन आदि जानने की कला, (इति वावत्तरिकलाओ सेहावित्ता सिवावेत्ता अम्मापिइण तभर 'समवायाग मा ४स भथियार मन धातुपा समावेश गडी 3२३॥ नये १५ (सुत्तखेड) सूत्र-द्वाराथी २भवानी,RE (वट्टखेड) पहा२१ ५२ २. पानी, मी अभवायागमा ४९स (चम्मखेड) याभाथी सवुमेना पर सभावेश ४य छ १७ (नालियासेड) चतविशेष २भपानी-sिt पास नाभीन भा२ २भवानी, ६८ (पत्तन्छेज्ज) पत्र वानी, १०८ पत्रोमाथी विवक्षित पत्र ४५पामा हाथनी अशणता नी, ६६ (कडच्छेज)४टनी-मर्थात यानी यह भभथी छन ४२वानी,७० (सज्जीय) भारी धातुमान शनप्रतिस्थ ४२वाती, ७१ (निन्जीव)नि ४२वानी-भ माहियातुमान भारपानी, मथवा पाराने भारवानी ७२ (सउणरुय) पक्षियोन श६ सभापानी, तेमनी गति, येष्टा तेमा भानमा पानी ४11 (इति वायत्तरिकलाओ सेहावितों सिक्खाविता
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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